शहर संभाले तो गाँव पिछड़े, कैसे आयेंगे अच्छे दिन

राकेश दुबे@प्रतिदिन। बड़ी मुश्किल है, रेपो रेट के फैसले से सरकार, सरकार शहर में अच्छे दिन आने का आभास दिला रही हैं, इसके विपरीत देश की आर्थिक वृद्धि में ग्रामीण इलाकों का योगदान अक्टूबर-दिसंबर की तिमाही में घट गया है, जो पिछली तिमाही में 5.3 फीसदी था।  कंजयूमर गुड्स फर्मों और ऑटो मेकर्स ने भी ग्रामीण सेल में गिरावट की रिपोर्ट दर्ज की है।


भारत के 1.25 अरब लोगों में से 80 करोड़ से ज्यादा लोग गांवों में रहते हैं, जिनका योगदान इकॉनमी में 35 फीसदी है। मोदी की बीजेपी को इस साल के अंत में उस बिहार राज्य में चुनावों का सामना करना है जो हिंदी पट्टी के उन सबसे बड़े राज्यों में से एक हैं जहां बड़ी संख्या में ग्रामीण गरीब रहते हैं। साथ ही 2016 में पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में भी चुनाव होने हैं।

महंगाई पर रोकथाम और राज्यों के लोन पर लगाम कसने के लिए मोदी सरकार ने खेती के समर्थन मूल्यों में बढ़ोतरी को सीमित कर दिया है। इसका उद्देश्य महंगाई दर को घटाना और रोजगार योजनाओं को बढ़ाना है। वह इंफ्रास्ट्रक्टर और स्किल्स में निवेश करना चाहते हैं जिससे भारत के दीर्घकालीन विकास को बल मिल सके। हालांकि, इन उपायों से महंगाई में तो कमी आई लेकिन सरकार द्वारा अचानक निवेश में कमी लाए जाने से से वे फर्में मुश्किल में आ गई है जो ग्रामीण इलाकों की मांग के कारण लाभ में आई थीं।

मोदी सरकार की ग्रामीण इलाकों में निवेश को लेकर नीतियों में बदलाव से खेती की वस्तुओं की ग्लोबल कीमतों में गिरावट आई है। जिससे आयात सस्ता हो रहा है और भारतीय निर्यातकों को नुकसान हो रहा है। ग्रामीण इलाकों को लाभ पहुंचान के उद्देश्य से सड़कों, रेलवे और सिंचाई प्रोजेक्ट्स में निवेश तेज करने की सरकार की योजना का लाभ फिलहाल इसलिए नहीं मिल पा रहा है क्योंकि बजट की बाधा के कारण फिलहाल इन प्रोजेक्ट्स की गति धीमी है।

लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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