लोग बीमार: बाज़ार के हाथों में सरकार

राकेश दुबे@प्रतिदिन। केंद्र सरकार बहुत तेज़ी से काम कर रही है और बाज़ार उसकी गति को और धार देने पर तुला है| बाज़ार संवेदनहीन होता है, और उसके इशारों पर चलने वाली सरकार के लिए कोई भी उपमा व्यर्थ है| केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य बजट में कटौती तो पहले ही कर दी है अब मुफ्त में दी जाने वाली जेनेरिक दवाओं कि संख्या काम करने कि योजना बाज़ार के दबाव में आने जा रही है| अभी तक स्वीकृत 348 जेनेरिक दवाओं के संख्या घटा कर ५० करने का इरादा है|

जानकर सूत्रों का कहना कि इस सारी कारास्तनी के पीछे प्राइवेट दवा कंपनियां हैं जो नहीं चाहतीं कि जनता को 348 दवाएं फ्री में दी जाएं। इससे उनको अरबों रुपये का घाटा होने का डर सता रहा है क्योंकि जेनरिक दवाओं के बाजार रेट में भी जमीन-आसमान का फर्क रहता है। दवा कंपनियों के दबाव का ही नतीजा है कि स्वास्थ्य मंत्रालय अब इस योजना से पीछे हटता नजर आ रहा है। कई राज्य अभी 348 से ज्यादा दवाएं मरीजों को मुफ्त में मुहैया करा रहे हैं। इन 384 दवाओं को जिला अस्पतालों, प्राइमरी हेल्थ सेंटर्स और अन्य केंद्रों के जरिए जनता को मुहैया कराया जाना था।

दवाओं कि कीमत करने को लेकर बड़ी उलझन है| दवाओं के रेट तय करने का अधिकार 2013  के ड्रग्स प्राइसेज कंट्रोल ऑर्डर के तहत दिया गया है। उसने हाल में ही इस अधिकार का प्रयोग करते हुए जरूरी दवाओं की सूची से बाहर की कई दवाओं के दामों की अधिकतम सीमा तय कर दी थी।  उसने तब कैंसर, एचआईवी और दिल के रोगों की दवाओं समेत 108 दवाओं के दाम कम कर दिए थे। इससे दवा कंपनियां बौखला गई थीं। अब वे जेनेरिक दवाओं के वितरण पर  जमीन आसमान एक कर रही हैं| हैरानी की बात नहीं है कि किसी दिन संविधान से स्वास्थ्य जैसा विषय ही रातोरात गायब हो जाये| कुछ कीजिये, सरकार|

लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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