सौर सप्तमी की कथा एवं विधि: स्त्रियों के लिए मोक्षदायिनी

यह व्रत माघ शुक्ल सप्तमी के दिन होता है। इस बार यह व्रत 26 जनवरी के दिन है। इस व्रत को महिलाएं सूर्य-नारायण के निमित्त करती हैं। इसीलिए इसे सौर सप्तमी भी कहते हैं। स्त्रियों को चाहिए कि वे इस दिन एक बार भोजन करके सूर्य देव की पूजा करें।


दैनिक क्रियाओं से निवृत्‍त होकर सूर्य देव की अष्टदली प्रतिमा बनाकर मध्य में शिव व पार्वती की विधिपूर्वक पूजा करें। पूजन के बाद तांबे के बर्तन में चावल भरकर ब्राह्मणों को दान करना चाहिए।

कथा
एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि कृपा करके यह बताइए कि कलयुग में स्त्री किस व्रत के प्रभाव से अच्छे पुत्र वाली हो सकती है ? तब श्रीकृष्ण ने कहा कि प्राचीनकाल में इंदुमती नाम की एक वेश्या थी। उसने एक बार वशिष्ठ जी के पास जाकर कहा कि मुनिराज में आज तक कोई धार्मिक कार्य नहीं कर सकी हूं। कृपा कर यहबताइए कि मुझे मोक्ष कैसे मिलेगा।

वेश्या की बात सुनकर वशिष्ठ जी ने बताया कि स्त्रियों को मुक्ति, सौभाग्य और सौंदर्य देने वाला अचला सप्तमी से बढ़कर और कोई व्रत नहीं है। इसीलिए तुम इस व्रत को माघ शुक्ल सप्तमी के दिन करो, इससे तुम्हारा सभी तरह से कल्याण हो जाएगा।

वशिष्ठ जी की शिक्षा से इंदुमति ने यह व्रत विधिपूर्वक किया और इसके प्रभाव से शरीर छोड़ने के बाद स्वर्गलोक में गई। वहां वह समस्त अप्सराओं की नायिका बन गई। स्त्रियों के लिए इस व्रत का विशेष महत्व है।


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