आधार के लिए 80 किमी पैदल चली गर्भवती: पहाड़ी एवं नदी-नाले किए पार

मो. इमरान खान/नारायणपुर/छत्तीसगढ़। महाराष्ट्र से सटे अबुझमाड़ की पदमकोट पंचायत के मेटाबेड़ा गांव से दो दर्जन लोगों के साथ 80 किमी पहाड़ी एवं नदी-नालों को पार कर पगडंडियों के रास्ते छह माह की गर्भवती एक आदिवासी महिला श्रीमती पाले पुंगाटी आधार कार्ड बनवाने के लिए शनिवार की रात जिला मुख्यालय पहुंची। अब आधार कार्ड के दस्तावेज जमा कर ये लोग फिर पैदल अपने गांव जाएंगे।

राजू पुंगाटी, मंगलू पुंगाटी, श्रीमती जैते पुंगाटी, रामजी पुंगाटी, श्रीमती मेने पुंगाटी, पुसू पुंगाटी समेत करीब दो दर्जन आदिवासी शुक्रवार की रात जिला मुख्यालय पहुंचे। ये लोग शुक्रवार की सुबह 9 बजे अपने गांव से लकड़ी, बर्तन, उड़द की दाल, सूखी मछली, कोसरा, कुछ कपड़े आदि लेकर निकले थे।

शुक्रवार की रात ये लोग कुतूल में रुके। वहीं भोजन पकाया और फिर शनिवार की सुबह जिला मुख्यालय के लिए निकले। इनमें वृद्ध-वृद्धाओं के अलावा दूधमुंहे बच्चे भी शामिल हैं। सामान और बच्चों को लेकर इन लोगों ने इतना लंबा सफर तय किया। उन्हें ग्राम पंचायत के सचिव संजय यादव ने आधार कार्ड बनवाने कहा था।

युवक राजू पु्गाटी ने बताया कि आधार कार्ड अबुझमाड़ में नहीं बन रहा है और सचिव ने उन्हें यहां बुलवाया था। वे अपने राशन कार्ड लेकर आए हैं। गर्भवती श्रीमती पाले पुंगाटी भी उनके साथ दो दिनों तक 80 किमी पैदल चली। राजू के मुताबिक उसके साथ पति पुसू आया है। गांव तक रास्ता नहीं है। कोई भी वाहन गांव तक नहीं जा सकती है। एकमात्र जरिया पैदल चलना ही है।

स्कूल है ना स्वास्थ्य केन्द्र
गांव में ना तो स्कूल है और ना ही स्वास्थ्य केन्द्र। इसके लिए वे 35 किमी दूर कुतूल पर आश्रित हैं। आवागमन का साधन नहीं होने से वे सिरहा-गुनिया और जड़ी-बूटी से काम चलाते हैं। यहां आई श्रीमती मेने पुंगाटी के पति रामा को भालू ने काटा था।

वे जड़ी-बूटी से इलाज करवाने महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के एलएमकसा गांव गए। कुछ दिनों बाद रामा की मौत हो गई। गांव में स्कूल नहीं होने से कुछ बच्‍चे पढ़ने के लिए कुतूल गए थे। फिर पढ़ाई छोड़ दी। अब गांव के बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं। इस गांव में कोई सरकारी नुमाइंदा कई सालों से नहीं आया है। खुद ग्राम सचिव भी नहीं आते हैं। वे लोगों को कुतूल बुला लेते हैं। निराश्रित पेंशन एवं राशन कुतूल में ही मिलता है।

महाराष्ट्र से खरीदी
अबुझमाड़ का ये इलाका महाराष्ट्र सीमा से लगा हुआ है। लोग कपड़े-बर्तन आदि सामान खरीदने के लिए महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के बिनगुण्डा, एलएमकसा एवं अन्य गांव की ओर जाते हैं। सिर्फ सस्ते राशन के लिए ही वे कुतूल पर आश्रित हैं। गांव में कोई सरकारी काम नहीं चल रहा है। पंचायत के पास कोई काम नहीं है। राज्य एवं केन्द्र शासन की योजनाओं से ये लोग अनजान हैं।

सालों पहले खोदे गए नलकूपों से काम चल रहा है। इसके अलावा इस इलाके में लोग नदी-नालों का पानी पीने मजबूर हैं। बिजली का तो सवाल ही नहीं उठता है। बुजूर्ग हिरगु पुंगाटी बताते हैं कि जिंदगी काफी कठिन है। कोई कर्मचारी गांव की ओर झांकता तक नहीं है। बताते हैं कि सचिव संजय यादव 2010 से यहां पदस्थ हैं लेकिन उन्होंने गांव कभी देखा ही नहीं। समझा जाता है कि एरिया अतिसंवेदनशील होने के चलते वे नहीं जाते हैं। कोई जोखिम उठाना नहीं चाहता है। मूलभूत की राशि नहीं मिलने से गांव में कोई काम वे नहीं करवा रहे हैं।

मध्ययुगीन जीवनशैली
अबुझमाड़ के दूसरे छोर पर बसी पदमकोट पंचायत के मेटाबेड़ा के लोगों की जीवनशैली मध्ययुगीन है। वे धान की बोवाई आज भी नहीं करते हैंं। करते भी हैं तो नहीं के बराबर। कोसरा और उड़द वे उगाते हैं। यही इनका मुख्य भोजन है। इन फसलों के बीज को ये बारिश के पहले खेतोें में डाल देते हैं और सिर्फ काटने ही जाते हैं। कंद-मूल ये जंगल से ले आते हैं। शिकार में मिले वन्यजीव और मछली को वे सूखाकर रखते हैं। तेल का तो इस्तेमाल वे बिलकुल भी नहीं करते हैं।

ठिठुरते गरीबों को कंबल
ठिठुरती सर्द रात में ये ग्रामीण जिला मुख्यालय पहुंचे। इन्होंने अपना ठिकाना पहाड़ी मंदिर के समीप कुकूर नदी के किनारे बनाया। ठण्ड से बचने अलाव की व्यवस्था कर ली। वे अपने साथ सूखी लकड़ियां लेकर आए थे। रास्ते से गुजर रहे दो लोगों ने पहाड़ी मंदिर के नीचे प्रतिक्षालय में रूकने की सलाह उन्हें दी। फिर पहाड़ी मंदिर के नीचे बने प्रतिक्षालय के बाहर उन्हाेंने भोजन पकाया। यहां ट्यूबवेल का पानी आता है।
इनके पास ओढ़ने को पतले शॉल थे। छोटे बच्चों के साथ महिलाएं ठिठुर रही थीं। इसकी जानकारी मिलने पर नगरपालिका के पूर्व उपाध्यक्ष युधिष्ठिर जैन एवं व्यापारी मुकेश जैन ने 23 कंबल एक स्थानीय दुकान से नकद क्रय किया। ये कंबल दोनों ने इन्हें पहाड़ी मंदिर में जाकर दिए। दोनों ने कोई और जरूरत पड़ने पर मदद का भरोसा दिया।

कैसे कटेंगे तीन दिन
ये लोग शनिवार की रात यहां आए और रविवार की सुबह ही भोजन पका लिया। इनके भोजन में कोसरा और उड़द दाल था। गर्भवती महिला श्रीमती पाले पुंगाटी ने अपने परिवार के लिए सूखी मछली का शोरबा बनाया था। भोजन करने के बाद वे सामान समेटकर सचिव के घर के लिए निकले लेकिन सचिव जिला मुख्यालय में नहीं थे। रविवार और सोमवार को अवकाश होने के कारण आधार कार्ड नहीं बन पाएगा। मंगलवार को मुमकिन है कि आधार कार्ड के लिए जरूरी दस्तावेज जमा हो जाएं। इनके पास तीन दिनों का भोजन नहीं है। कोसरा और दाल खत्म हो जाएगा। नगद भी ज्यादा इनके पास नहीं है। लौटते वक्त दो दिन के भोजन की जरूतर रास्ते में होगी।


#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !