कैलाश विजयर्गीय ने बनाई धर्मांतरण की नई परिभाषा

shailendra gupta
उपदेश अवस्थी/भोपाल। हरियाणा से लौटे नगरिय निकाय मंत्री कैलाश विजयर्गीय अब राष्ट्रीय हो गए हैं, इसलिए वो हर राष्ट्रीय फटे में टांग भी अड़ा देते हैं। अभी धर्मांतरण के मुद्दे में अड़ाई है। अब इस मामले के पक्ष विपक्ष में तो मोदी और मोहन भागवत तक बोल चुके, सो कैलाशजी क्या करते ? इसलिए उन्होंने धर्मांतरण की नई परिभाषा जारी कर दी।

उन्होंने अपनी फेसबुक वॉल पर छापा है कि:-
आजकल सारे देश में "धर्मान्तरण" चर्चा का विषय है, लेकिन कतिपय बुद्धिजीवी "धर्मान्तरण और घर वापसी" में अंतर नहीं कर पा रहे हैं। धर्मान्तरण जबरन, मजबूरी या प्रलोभन में होता है जबकि घर वापसी यह स्वाभाविक एवं स्वैच्छिक प्रक्रिया है। मेरी विधानसभा क्षेत्र के कार्यकर्त्ता अशरफ के कुटुंब के लोग आज भी उत्तरप्रदेश में यादव हैं, मेरे एक परिचित ने एक पीढ़ी पहले धर्मान्तरण किया जबकि उनके कुटुम्ब के लोग आज भी जोशी लिखते हैं। जब व्यक्ति को अपने पूर्वजों-संस्कारों-संस्कृति की याद आने लगती है तब वह जड़ों की ओर लौटता है, इस पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिये।

कुल मिलाकर कैलाशजी ने भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 में दर्ज पंक्तियों की मूल भावना को ही बदल दिया। अब तक तो लोग समझते थे कि धर्म+अंतरण=धर्मांतरण, अर्थात धर्म के पविर्तन की प्रक्रिया को धर्मांतरण कहते हैं। ये बलात् धर्मांतरण नहीं है। सिर्फ धर्मातरण है और 'घर वापसी' तो केवल एक अभियान का नाम है प्रक्रिया का नहीं।

हिन्दुओं को ईसाई या मुसलमान बनाया गया, वो भी धर्मांतरण ही था, अब जब मुसलमानों या ईसाईयों को वापस हिन्दू बनाया जा रहा है तो यह भी धर्मांतरण ही है। आरएसएस से जुड़े कुछ संगठनों ने इस अभियान का नाम 'घर वापसी' रखा है। इसमें बलात् या स्वैच्छिक कुछ भी नहीं है।

समस्या यह नहीं है कि लोग धर्मांतरण का विरोध क्यों कर रहे हैं, वो तो पहले भी करते थे। समस्या यह है कि मुद्दे को मूल से भटकाया क्यों जा रहा है। कैलाश विजयर्गीय जैसे जमीनी नेता धर्मांतरण की परिभाषाएं क्यों जारी कर रहे हैं जबकि उनके प्रभावक्षेत्र में पिछले 10 वर्षों में ढाई लाख से ज्यादा अनुसूचित जाति के हिन्दू नागरिकों को ईसाई बनाया जा चुका है। असलियत यह है कि सत्ता में मौजूद नेता 'घर वापसी' का लेश मात्र भी प्रयास नहीं कर रहे परंतु मुद्दे पर अपनी सील जरूर लगाए जा रहे हैं।

धर्मांतरण को मुसलमान विरोधी ऐजेंडा क्यों बनाया जा रहा है, जबकि यह तो ईसाई विरोधी है। हिन्दू से मुसलमान बनने की घटना तो सैंकड़ों साल पुरानी है। अब तो वो पीढ़ी जिंदा भी नहीं बची जिसने अपनी जान की हिफाजत में इस्लाम कबूल किया था। पिछले 50 सालों से ईसाई मध्यप्रदेश और भारत के गांव गांव में गरीबों का धर्मांतरण करवा रहे हैं। यह प्रक्रिया मप्र में भाजपा सरकार बनने के बाद भी जारी थी और अब केन्द्र में मोदी सरकार बनने के बाद भी जारी है। इसे रोकने का अभी तक कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया है। गरीबों के पास वो राहतकार्य सरकारें आज तक नहीं पहुंचा पाईं जो विदेशी फंडिंग से चलने वाली ईसाई मिशनरियां पहुंचा रहीं हैं।

खेल में यदि जीतना हो तो प्रतिस्पर्धी से ज्यादा स्कोन बनाना पड़ता है। फेसबुक की वॉल पर नई नई परिभाषाएं चिपकाने से कुछ नहीं होता। सवाल यह नहीं है कि कैलाशजी के परिचित परिवार के क्या हाल हैं, सवाल यह है कि कैलाशजी अपने परिचितों की भी 'घर वापसी' नहीं करवा पाए। बस भीड़ में कूदकर भांगड़ा कर रहे हैं।

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