राकेश दुबे@प्रतिदिन। मुद्दा “घर वापिसी” है, कोई इसे धर्मांतरण कह रहा है| सब बात को बड़ा रहे हैं कोई यह कहने सुनने को तैयार नहीं है कि घर वापिसी और धर्मांतरण अलग-अलग है| जो कहीं चले गये थे, वे अगर वापिसी लौट रहे हैं, तो कौन सा कहर बरपा हो रहा है| संसद में जिस तरह जनता की गाढ़ी कमाई बिना किसी कारण के व्यर्थ जा रही है, वह बड़ा मुद्दा है और जनता यह समझ रही है|
पिछले हफ्ते विपक्ष ने लगातार राज्यसभा की कार्यवाही ठप रखी और प्रधानमंत्री ने यह गतिरोध दूर करने की कोशिश नहीं की, उससे एक बार फिर यही जाहिर हुआ कि हमारे राजनेता सदन में हंगामे कर संसद ठप्प करने को लेकर गंभीर नहीं हैं। यूपीए सरकार के समय कई सत्रों के हंगामे की भेंट चढ़ जाने की वजह से हुए नुकसान से भी कोई सबक लेने की जरूरत नहीं समझी गई और न अब कोई यह समझने को तैयार है|
नियम के अनुसार चर्चा का जवाब गृह मंत्री को देना है, प्रतिपक्ष प्रधानमंत्री के जवाब पर अड़ गया है, उसे अड़ना भी चाहिए जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी तो उन्होंने दावा किया था कि हर बात के लिए वे जवाबदेह होंगे, उनसे कभी भी सीधे संपर्क किया जा सकता है। फिर इस मसले पर उन्हें कुछ देर राज्यसभा में भी बयान देने से क्यों गुरेज करना चाहिए ?
संसद की चौखट पर शीश नवाने वालों को तो संसदीय कार्यवाही की नियमावली की क्यों फिक्र होनी चाहिए थी। । इस विषय पर लोकसभा में कोई हंगामा न होने का कारण साफ है कि वहां विपक्ष एक तरह से अनुपस्थित है। वह राज्यसभा में है। इसलिए अगर वह वहां इस पर बहस करना चाहता है तो अनुचित क्या है ?
अनुचित है तो समय की बर्बादी, जनधन की बर्बादी और उस भरोसे की अवमानना जो जनता ने सांसदों पर किया है|
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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rakeshdubeyrsa@gmail.com
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