राकेश दुबे@प्रतिदिन। लगभग देश के हर प्रान्त में कभी भी इंजीनियरिंग, चिकित्सा विज्ञान जैसे पेशेवर पाठ्यक्रमों में प्रवेश और विभिन्न नौकरियों के लिए होने वाली परीक्षाओं में गडबडी हो रही है। कभी कोई परचा लीक हो जाता है तो कभी अभ्यर्थी की जगह कोई और परीक्षा देते पकड़ा जाता है। परीक्षक ओर पेपर बनाने वाले भी कुछ ऐसा करते है की मिसाल कायम हो जाती है|
एक बड़ी परीक्षा में गांधी के बारे में पूछे गए सवाल का जवाब देने के लिए जो चार विकल्प दिए गए थे उनमें से किसी का भी चुनाव नहीं किया जा सकता था लेकिन इसकी गुंजाइश नहीं छोड़ी गई। चार विकल्पों में से ही किसी एक को चुनने के लिए अभ्यर्थियों को विवश किया गया। ऐसे में, कहने की जरूरत नहीं कि यह प्रश्न कितना आपत्तिजनक था।
प्रश्नपत्र विशेषज्ञ तैयार करते हैं। ऐसा प्रश्न कैसे रखा गया, जो गांधी के बारे में गलत जवाब देने के लिए बाध्य करता हो? यह प्रश्न गांधीजी के बारे में सुनियोजित दुष्प्रचार का हिस्सा ही जान पड़ता है। और यह कोई अलग-थलग घटना नहीं है। एक ओर गांधीजी की छवि खराब करने वाला प्रश्न पूछा गया, और दूसरी ओर, देश में अनेक प्रकार के व्यर्थ विवाद भी बढ़ रहे हैं|
यह विवाद आगे चलकर इतहास का हिस्सा बन जाते हैं| स्कूल से लेकर महाविद्यालय तक इतिहास को मनमाने तरीके से पढ़ाते रहने से ऐसे अध्यापक तैयार हो गये हैं,जिन्हें इतिहास के तथ्यों की जानकारी नहीं है| इससे निकलनेवाले छात्र भी विषय को गम्भीरता से नहीं लेते| सरकार अच्छे दिन की शुरुआत स्कूल से करे| प्रतियोगी परीक्षा के प्रश्न पत्र में मुख्य विषयों के साथ राष्ट्रीय समस्याओं के निदान की जानकारी का परीक्षण जरूरी है, वरन हर जगह मुन्ना भाई ही मुन्ना भाई मिलेंगे|
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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