उपदेश अवस्थी@लावारिस शहर। इस देश में कब क्या स्टेटस सिंबल बन जाए कहा नहीं जा सकता। इन दिनों एक फिल्म 'पीके' पर कमेेंट करना सोशल मीडिया पर स्टेटस सिंबल बन गया है। लोग पता नहीं क्या क्या बातें कर रहे हैं। पहले कुछ हिन्दू ही सक्रिय थे, अब मुसलमान भी सक्रिय हो गए हैं।
आश्चर्य तो यह है कि लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेता भी 'पीके' के नाम पर फुटेज खा गए। अब उनकी बात समझ में आती है, मोदी के आने के बाद वो मीडिया में अछूत हो गए थे। फुटेज की भूख से तड़प रहे थे, सो उन्हें 'पीके' मजा आ गया, लेकिन समझ नहीं आ रहा कि शेष सारे के सारे लोग जिन्हें फुटेज की भूख नहीं हैं, क्यों उत्पात मचा रहे हैं।
मेरे कई हिन्दू मित्रों ने 'पीके' का तीखा विरोध किया है वहीं एक हिन्दू मित्र ने 'पीके' के विरोधियों का विरोध किया है, कहा है ओ माइ गॉड का विरोध क्यों नहीं किया। मेरे एक मुसलमान पत्रकार मित्र ने भी मौका नहीं चूका और 'पीके' के समर्थन में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का आनंद ले डाला।
मैं बिल्कुल यह नहीं कहना चाहता कि 'पीके' हिन्दू धर्म के समर्थन में है या विरोध में, मैं तो केवल यह कहना चाहता हूं कि यह हिन्दू धर्म ही है जो शास्त्रार्थ की अनुमति प्रदान करता था। क्षमा चाहूंगा परंतु दुनिया का दूसरा कोई भी धर्म अपनी आलोचना की अनुमति नहीं देता। सैंकड़ों वर्षों से हिन्दू धर्म और धर्मग्रंथों पर शास्त्रार्थ होता रहा है। पहले जब हिन्दू विरोधी एक्टिव नहीं थे तब आस्तिक और नास्तिकों के बीच शास्त्रार्थ हुआ करते थे। पहले भी रामायण और गीता को कई बार मोटी उपन्यास और सबसे बड़ी कपोलकल्पित कविता का नाम दिया जा चुका है। ईश्वर की उपस्थिति को भी सिरे से नकारा जा चुका है और पूजा प्रक्रियाओं को पाखंड करार दिया जा चुका है।
हे, मेरे प्रिय हिन्दुओ, अपने धर्म को पहचानने का प्रयास तो करो, यह हिन्दू धर्म ही है जो इसकी अनुमति देता है। हिन्दू धर्म कतई यह नहीं चाहता कि उसका पालन करने वाले अंधविश्वासी और मूर्ख हों। वो चाहता कि यदि कोई हिन्दू है तो वो निपुण हो, शास्त्रार्थ में और आस्था को प्रमाणित करने में। इसलिए आलोचना का अवसर मुहैया कराया गया है। ऐसी आलोचनाएं धर्मप्रेमियों को और भी ज्यादा दृढ़ बनाती हैं। कतई चिंता मत करो, धर्म खतरे में नहीं है, हिन्दू धर्म जब मुगलकाल में नष्ट नहीं हुआ तो अब कभी नहीं होगा, लेकिन तुम अपनी धर्मरेखा पर चलना बंद मत करो। ये जो कर रहे हो वो हिन्दू नहीं है, वो तो कट्टर है। हिन्दू कभी दरख्त नहीं काटता, जड़ों में उपचार करता है।
यदि वो पूछते हैं कि श्रावण में शिवलिंग पर दूध क्यों चढ़ाया जाता है तो इस पर बहस होना चाहिए। इसलिए नहीं कि उन्होंने पूछा है और जवाब दिया जाना है, बल्कि इसलिए ताकि आपको यह ज्ञात हो जाए कि इसके लिए तर्क क्या था। बिना अध्ययन के विरोध की अनुमति हिन्दू धर्म नहीं देता।
इसलिए हे, मेरे प्रिय हिन्दुओ, 'पीके' का विरोध करो, लेकिन पोस्टर मत जलाओ, उनकी सवाल उठाने की स्वतंत्रता छीनने का प्रयास भी मत करो, बल्कि अध्ययन करो और 'पीके' किए गए सवालों को पूरे होशो हवास में तर्कसम्मत जवाब प्रस्तुत करो। इसी से बढ़ेगी आपकी धर्म प्रभावना।
हो हिम्मत तो अध्ययन करो और फिर जवाब दो।