अभिषेक पाण्डेय। भारत में 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को नि:शुल्क अनिवार्य शिक्षा देने का कानून लागू होने के पांच साल बाद भी सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में कोई क्रांतिकारी सुधार नहीं आया है। राज्य सरकार की मशीनरी केवल खानापूर्ति ही कर रही हैं।
अच्छी शिक्षा देना राज्य सरकार का दायित्व है, नौकरशाही के चलते उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड जैसे राज्यों की सरकारी शिक्षा की स्थिति दोयम दर्जे की है। इन राज्यों में महंगे पब्लिक स्कूलों में बच्चों को अभिभावक भेजने में मजबूर है। आरटीइ एक्ट के बाद भी टीचर्स की भर्ती प्रक्रिया में शिक्षा पात्रता परीक्षा को कई राज्य महत्व दे नहीं रहे हैं, केवल खानापूर्ति की जा रही है।
मध्य प्रदेश जैसे राज्य में संविदाशाला शिक्षक भर्ती के जरिए कम वेतन में शिक्षकों की भर्ती की गई, जाहिर है विभिन्न प्राइवेट संस्थानों में शिक्षकों को अच्छा वेतन मिलता है तो ऐसे में आठ हजार रुपये में इन स्कूलों में पढ़ाने के लिए योग्य टीचर क्यों आएंगे? वहीं मध्य प्रदेश में संविदाशाला शिक्षक भर्ती कराने वाली संस्था व्यापम पर पैसे लेकर भर्ती करने का आरोप लगा है, ऐसे में इन यहां की सरकार चाहे जितनी वादे कर ले लेकिन शिक्षा व्यवस्था में गुणवत्ता लाने के अपने चुनावी वादे तोड़ रही है।
इसी तरह उत्तर प्रदेश का हाल है, यहां पर प्राइमरी स्कूलों में अच्छे वेतन पर शिक्षक रखे जाते हैं लेकिन इस सरकारी स्कूलों की स्थिति दोयम दर्जे की शिक्षा देने वाली हैं। इसके लिए यहां की सरकार स्वयं जिम्मेदार है, शिक्षकों की भर्ती के साथ अन्य भर्ती वोट बैंक की राजनीति से प्रेरित होती है। उत्तर प्रदेश में वर्ष 2011 में शिक्षक पात्रता परीक्षा के आधार पर भर्ती करने का विज्ञापन वर्तमान में आई सरकार ने इस ले रद्द कर दिया कि इस भर्ती में शामिल अभ्यर्थी पिछली सरकार के वोट बैंक हैं, जिसके चलते सरकार ने नया विज्ञापन निकालकर शिक्षक पात्रता परीक्षा के प्रा’ अंकों के आधार पर भर्ती करने के आधार को बदल कर एकेडमिक अंकों से भर्ती करने का प्रावधान कर चुनावी फायदा हासिल करना चाहा।
यह मामला जब हाईकोर्ट में गया तो सरकार के सारे तर्क बेकार साबित हुए, और हाईकोर्ट इलाहाबाद ने पुराने विज्ञापन को बहाल करने के साथ शिक्षक पात्रता परीक्षा-2०11 में उतीर्ण अभ्यर्थियों के हक में फैसला दिया कि इनकी भर्ती शिक्षक पात्रता परीक्षा-2०11 के मेरिट पर की जाए लेकिन सरकारी तंत्र तो केवल वोट बैंक की राजनीति समझती है इसीलिए उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ रिट दायर किया, वहां पर बहस के दौरान सरकार को हार का सामना देखना पड़ा और महत्वपूर्ण फैसला आया जो गुणवत्तायुक्त शिक्षा के लिए नजीर बन गया।
आर्डर के मुताबिक शिक्षक पात्रता के अंकों के आधार पर चयन न्याय संगत है, इससे उच्च गुणवत्ता वाले शिक्षकों की भर्ती होती है जोकि आरटीई एक्ट के अनुरूप है, इसीलिए सुप्रीमकोर्ट ने इस परीक्षा में आरक्षित वर्ग में 65 प्रतिशत से अधिक और सामान्य वर्ग में 7० प्रतिशत से अधिक अंक पाने वाले सभी पात्र अभ्यर्थियों को नियुक्ति करने का आदेश दिया। लेकिन इसके बाद भी उत्तर प्रदेश सरकार सुप्रीमकोर्ट केऑर्डर को सही ढंग से व्याख्या नहीं कर पाई है।
हालांकि यह सरकार की नीति है जो वोट बैंक और अपनी हटधर्मिता के कारण शिक्षा, पुलिस, चिकित्सा जैसें महत्वपूर्ण विभाग में नियुक्ति को वोट बैंक से जोड़ती है। देखा जाए तो राज्य सरकार शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर कोई ठोस नियम पर कार्य नहीं करने के कारण, नियुक्ति, ट्रांसफर, वेतन जैसें मामले कोर्ट में जा रहे हैं। दल जब चुनाव में होती है तो वोट बैंक की राजनीति करती है, जिससे नुकसान आम जनता को उठाना पड़ता है।
Abhishek Pandey
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