उमा भारती के खिलाफ चुनाव प्रचार के कूदे सिंधिया, इतिहास के पन्नों में हुई झनझनाहट

उपदेश अवस्थी/भोपाल। ग्वालियर राजघराने के महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने ही परिवार की दत्तक पुत्री उमा भारती के खिलाफ चुनाव प्रचार में कूद गए हैं। सनद रहे कि उमा भारती को सार्वजनिक जीवन में लाने का श्रेय राजमाता सिंधिया को जाता है और इसी लिहाज से उमा भारती ने कभी सिंधिया परिवार के सदस्य के खिलाफ चुनाव प्रचार नहीं किया।

हालांकि राजमाता विजयाराजे सिंधिया के देहवसान के बाद उमा भारती का सिंधिया परिवार से रिश्ता टूट गया है परंतु फिर भी उमा भारती के हृदय में सिंधिया परिवार के लिए आदर का भाव हमेशा देखा गया है। हालांकि जब उमा भारती मुख्यमंत्री बनीं तब उन्होंने सिंधिया परिवार की सदस्य व विधायक यशोधरा राजे सिंधिया को एक बार अपमानित करने का प्रयास किया था और इस खटास के चलते यशोधरा राजे सिंधिया ने भाजपा से इस्तीफा देने का मन भी बना लिया था परंतु बाद में सबकुछ शांत हो गया और उसके बाद उमा भारती और सिंधिया के बीच एक अनकही पर्देदारी बन गई थी।

उमा भारती ने कभी सिंधिया परिवार से नजदीकी ना तो बनाई और ना ही जताई परंतु कभी विरोध भी नहीं किया। सिंधिया परिवार ने भी उमा भारती को विस्मृत सा कर दिया था परंतु पुराने रिश्तों के ये कच्चे धागे एक बार फिर चर्चाओं में तब आ गए जब सिंधिया झांसी पहुंचे और उमा भारती के खिलाफ चुनाव प्रचार किया।

सिंधिया के झांसी कनेक्शन के और भी अर्थ हैं

सिंधिया दुनिया के किसी भी शहर में हों, वह इतना महत्वपूर्ण नहीं होता परंतु यदि सिंधिया झांसी में हैं तो यह एतिहासिक हो जाता है। ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर राजवंश से आते हैं और झांसी की रानी से उनकी शत्रुता इतिहास के कई पन्नों पर सुर्खियों के साथ दर्ज की गई है। यही कारण रहा कि महज 100 किलोमीटर की दूरी बाले इन दो शहरों के बीच कभी बेहतर व्यापारिक संबंध भी नहीं बन पाए। एक जमाने में तो हालात यह हुआ करते थे कि झांसी के निवासी ग्वालियर के लोगों से महज इसलिए नफरत किया करते थे क्योंकि वो सिंधिया के राज्य ग्वालियर के निवासी हैं। आजादी के कई दशकों बाद तक यह सिलसिला चलता रहा और आज भी गाहे बगाहे इतिहास के वो पन्ने पलटते ही रहते हैं। ऐसे में सिंधिया का झांसी जाना और चुनाव प्रचार करना कितना प्रभाव डालेगा और कांग्रेस के लिए लाभदायक होगा या नहीं, इसकी हर स्तर पर समीक्षा की जा रही है।

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