कुपोषण : घोषणा पत्र का नहीं, क्रियान्वयन का विषय हो

राकेश दुबे@प्रतिदिन। 2014 के चुनाव के रंगीन, चिकने और वादों से पूर्ण दलीय घोषणा पत्र हर दिन आ रहे है| सारे घोषणा पत्रों में रस्म अदायगी के लिए बच्चों को कुपोषण से मुक्त कराने का वादा भी एक पंक्ति में मौजूद है |
यह वादा पिछले कई चुनावों से ज्योंका त्यों लिखा जाता है और चुनाव के बाद,जो होता है वह किसी से छिपा नहीं है | सरकार न तो अपौष्टिक डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों का प्रचलन रोक सकी है और न मुफ्त दिए जाने वाले दोपहर के भोजन में होने वाले काले कारनामों पर ही कोई अंकुश लगा पाई है | समाज का जो वर्ग इससे सीधा प्रभावित है, वे बच्चे हैं, इसलिए उनकी आवाज़ न तो राज्य सरकार सुनती है और न ही केंद्र सरकार | बेचारे वोट जो नहीं देते हैं |

महानगरों में कराए गए एक ताजा अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है कि दिल्ली, मुंबई, चेन्नै, कोलकाता आदि में आधे से ज्यादा बच्चों का शारीरिक विकास अधूरा है। दिल्ली में यह आंकड़ा सड़सठ फीसद, चेन्नै में तिरासी, मुंबई में अठहत्तर और कोलकाता में छप्पन फीसद बताया गया है। चारों महानगरों को एक साथ देखें तो सत्तर फीसद बच्चे वजन और लंबाई में औसत से नीचे हैं।अध्ययन के मुताबिक, दिल्ली में चौंसठ फीसद बच्चे खाना खाने में पारंपरिक पौष्टिक आहार- रोटी-चावल, फल और सब्जियों के बजाय डबलरोटी या दूसरे डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ पसंद करते हैं। जरूरी भोजन या पौष्टिक तत्त्वों के अभाव के बरक्स यह बहुत सारे परिवारों में बच्चों की खानपान संबंधी बिगड़ती आदत और अनाज, फल या सब्जियां नहीं खाने की जिद से उपजी समस्या है।

राज्य और केंद सरकार ने इस समस्या का हल स्कूल के माध्यम से ही खोजा है, निजी स्कूलों में भारी भरकम राशि के बदले और सरकारी स्कूलों में सरकारी खाते से बच्चों दिया जाता है \ गुणवत्ता कहीं नहीं है | निजी स्कूलों के भोजन पर बाज़ार सरकारी स्कूलों के भोजन पर भ्रष्टाचार हावी है | सरकारे इस विषय की अनदेखी क्यों कर रही है, कहीं उन्हें २० वर्ष बाद देश में किसी बड़े दवा बाज़ार का इंतजार तो नहीं है |

लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com


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