भोपाल। प्रदेश कांग्रेस के मीडिया प्रबंधन प्रभारी उपाध्यक्ष मानक अग्रवाल ने कहा है कि भाजपा सरकार ने पिछले पांच वर्षों में इन्वेस्टर मीट के नाम पर राज्य के खजाने से अरबों की धनराशि खर्च कर केवल 784 एमओयू पर हस्ताक्षर कराये हैं। उनमें से राज्य सरकार ने 120 कंपनियों को उद्योगों की स्थापना के लिए हजारों हैक्टेयर जमीन दी है।
इन 120 कंपनियों में से मात्र 42 ने उद्योग लगाकर उत्पादन शुरू किया है। शेष में से 44 अभी उद्योग के लिए भवन निर्माण में ही लगी हुई हैं। निश्चित नहीं है कि उनके भवन कब पूर्ण होंगे और उनमें उत्पादन प्रारंभ करने की स्थिति कब आयेगी। आपने कहा है कि 120 में से 34 कंपनियां तो ऐसी हैं, जिनको सरकार उनकी मांग के अनुसार जमीन तो दे चुकी है, किंतु उद्योग लगाने को लेकर ये कंपनियां क्या कुछ कर रही हैं, राज्य सरकार को भी उसकी कुछ भी खबर नहीं है अर्थात हजारों हैक्टेयर सरकारी जमीन को दबाये बैठी इन कंपनियों के संबंध में सरकार बेखबर है।
श्री अग्रवाल ने आरोप लगाया है कि म.प्र. में भाजपा राज में पूंजी निवेश को बढ़ावा देने के लिये जितने भी इन्वेस्टर मीट हुए, सब भाजपा के लिए वोट जुटाने के गुणाभाग के तहत आयोजित थे। भाजपा सरकार न तो कल उनको लेकर गंभीर थी और न आज गंभीर है। प्रदेश के स्थानों पर सरकारी खर्च से महंगे आयोजन हुए और कुछ चुनिंदा उद्योगपतियों के आगे लाल कालीन बिछाकर उनकी शाही आवभगत की गई। अब नये उद्योग लगे या न लगे और प्रदेश के युवाओं के लिए रोजगार की संभावनाएं बढ़े या न बढ़े, उसको लेकर राज्य सरकार जरा भी चिंतित नहीं है। यदि चिंतित होती तो जो उद्योग निर्माणाधीन हैं, उनके निर्माण में तेजी जाने के लिए संबंधित कंपनियों को सरकार अवश्य आगाह करती और जिन 34 कंपनियों ने जमीन हथियाने के अलावा कुछ नहीं किया है, उनके बारे में स्पष्ट और सख्त नीति अख्तियार करती।
कांग्रेस के उपाध्यक्ष ने कहा है कि पूर्व के अनुभव रहे हैं कि जिन उत्पादक कार्यों के लिए कंपनियों अथवा समूहों ने सरकारी जमीनें प्राप्त की हैं, वे स्वीकृत काम की बजाय जमीन का अन्य प्रयोजन के लिए बेखौफ दुरूपयोग कर रहे हैं और सरकार उनसे अपनी जमीन वापस नहीं ले पा रही है। आपने कहा है कि इन्वेस्टर मीट के तहत एमओयू करके जो जमीनें सौंपी गई हैं, आशंका है कि उनका हश्र भी ऐसा ही होने वाला है। पूरी-पूरी आशंका है कि कुछ साल बाद इन जमीनों का धड़ल्ले से दुरूपयोग शुरू हो जाएगा और तब सरकार कुछ नहीं कर पाएगी। इंदौर जिले में ऐसी एक घटना पिछले दिनों हो भी चुकी है।
आपने कहा है कि राष्ट्र संत विनोबा भावे ने तो भूमिहीन गरीबों को भूमि उपलब्ध कराने के लिए भूदान आंदोलन चलाया था, लेकिन म.प्र. की भाजपा सरकार साधन संपन्न धनाढ्य लोगों की कंपनियों और समूहों को भूदान के बतौर सरकारी जमीनें दान स्वरूप दे रही हैं। उसको इस बात का जरा भी मलाल नहीं है कि प्रदेश की सरकारी जमीनें किसी की बपौती नहीं, प्रदेशवासियों की अमानत है।