राकेश दुबे@प्रतिदिन। देश के वित्त मंत्री पी० चिदाम्बरम को पछतावा हो रहा है कि उन्हें हिंदी नहीं आती उनकी तरह बहुत से लोग है जिन्हें मजबूरी में राजभाषा याद आती है | देश को ऐसे ही आधे-अधूरे मतलबी प्रयासों के कारण अब तक राष्ट्रभाषा नहीं मिल सकी है|
65 साल से देश राजभाषा से काम चला रहा है | उत्तर और दक्षिण दोनों ही बराबर के दोषी हैं | पता नहीं क्यों चिदाम्बरम जैसे व्यक्ति अपनी “माँ से मतलब पूर्ति तक रिश्ता” रखना चाहते हैं और “विदेशी आंटी के सामने बिछे रहना” पसंद करते हैं | चिदाम्बरम ने आज कहा कि “मुझे यदि हिंदी आती तो मैं मोदी के खिलाफ वाराणसी से लोकसभा का चुनाव लड़ता, लेकिन मोदी मेरे संसदीय सीट शिवगंगा से चुनाव नहीं लड़ सकते।“ कांग्रेस मोदी के खिलाफ एक ताकतवर उम्मीदवार उतारेगी।`
यह समझ से परे है कि दक्षिण देश की सारी हिंदी फिल्मो और गीतों का आनन्द लेता है, पर लिखने और बोलने में परहेज़ करता है | उत्तर भी पीछे नहीं है दक्षिण में बनी मसाला और गर्म फिल्म के संवाद अंदाज़ से समझने वाले कई महारथी यहाँ मौजूद हैं | सारी भारतीय भाषाओँ के मूल में संस्कृत है, इससे किसीको गुरेज़ और परहेज़ नहीं है | मलयालम, तमिल, तेलगु कन्नड़ और हिंदी के साथ देश की भाषाओँ को भ्रष्ट कर रही हिंगलिश में भी कई शब्द संस्कृत के हैं |
सच यह है कि चिदाम्बरम जैसी मानसिकता के “बड़े बाबु नुमा राजनेता” ही राष्ट्रभाषा के विकास को अवरुद्ध किये हुए हैं| हिंदी सिर्फ १४ सितम्बर को राजभाषा दिवस की रस्म अदायगी तक सीमित कर दी गई है और वोटों के सौदागर, अपने घोषणा पत्र में इस विषय पर चुप्पी साधना ही पसंद करते है | प्रमाण के लिए चुनाव घोषणा पत्र देख लें |
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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