राकेश दुबे@प्रतिदिन। 2014 के चुनाव में हर दल विकास की बात पर वोट लेने की बात कर रहे हैं| सबकी अपनी दलील है, सबके अपने वादे हैं| साथ ही सभी वर्गों की अलग-अलग अपेक्षा है, जैसे देश का अभिजात तबका और शहरी मध्यम वर्ग उदारीकरण और नई औद्योगिक नीति का कमोबेश समर्थक है।और उसके पक्ष में दलीलें देता है।
इसी तरह दक्षिणपंथी और मध्यवर्ती राजनीतिक दल- चाहे वह कांग्रेस हो, भाजपा हो या बसपा, राजद आदि- नई औद्योगिक नीति के बारे में लगभग मिलते-जुलते विचार रखते हैं। वामपंथी दल उदारीकरण और नई औद्योगिक नीति के बारे में हाल तक थोड़ी भिन्न भाषा का इस्तेमाल करते थे, लेकिन सत्ता की राजनीति ने उन्हें भी काफी हद तक बदल दिया है और आज वे भी नई औद्योगिक नीति और उदारीकरण के पैरोकार हो गए हैं।
देश में व्याप्त विपन्नता और विषमता को वर्तमान सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था की ही उपज मानते हैं, लेकिन कुल मिला कर वे भी उदारीकरण और औद्योगीकरण के पैरोकार हैं। उनकी भी स्पष्ट समझ यह है कि खेती अब अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान नहीं कर सकती; औद्योगीकरण ही एकमात्र रास्ता है। वे तो यहां तक कहते हैं कि खेती-योग्य जमीन पर उद्योग-धंधा स्थापित होने में कोई हर्ज नहीं। समय-समय पर आने वाले उनके वक्तव्यों-साक्षात्कारों, खासकर सिंगूर और नंदीग्राम के घटनाक्रम के दौरान आए उनके वक्तव्यों में वे स्पष्ट रूप से यह नजरिया रखते नजर आते हैं।
बहुत जरूरी है चुनावी घोषणा पत्र में इस विषय की स्पष्टता प्रत्येक राजनीतिक दल अपनी और से करे | विकास का एक पैमाना सभी राजनीतिक दल एक समान और समरूप तैयार करे तो भ्रम कम होगा और देश का हित होगा |
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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