मंहगाई भत्ता कर्मचारी का हक है, लेकिन....

डाॅ. सत्यनारायण जटिया। केन्द्रीय मंत्रिमंडल द्वारा ईपीएफओ पेंशन की 1000 रू. न्यूनतम राशि मंजूर किये जाने का फैसला श्रमजीवी परिवारों के साथ क्रूर मजाक है।

मुद्रास्फीति और बढ़ती मंहगाई के कारण आदमी का गुजारा कठिन हो गया है। ऐसे में 1000 रू. न्यूनतम पेंशन में गुजारा नहीं हो सकता। केन्द्र सरकार 1.16 प्रतिशत जो अंशदान जमा करती है उसमें वृद्धि करके न्यूनतम पेंशन राशि 3000 रू. मासिक की जाना चाहिए।

केन्द्र सरकार को बढ़ती मंहगाई को देखते हुए 10 प्रतिशत मंहगाई राहत की मंजूरी बहुत पहले दे देना चाहिए थी क्योंकि यह वृद्धि केन्द्र सरकार का अनुग्रह नहीं कर्मचारियों की मेहनत, समर्पण और कार्यों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का परिणाम है लेकिन लोकसभा चुनाव की आहट पाकर जिस तरह यूपीए सरकार ने 10 प्रतिशत मंहगाई भत्ता बढ़ाये जाने की घोषणा की है, केन्द्र का प्रदर्शन चुनाव में समर्थन के लिए लालच देना बन गया है।

केन्द्र सरकार चुनावी प्रलोभन देती खड़ी दिखाई दे रही है जो आदर्श आचार संहिता की भावना के विपरीत है। उन्होनें कहा कि कर्मचारियों के प्रति सहानुभूति और संवेदना दिखाना हर सरकार का कर्तव्य है लेकिन जिस अनुग्रह के रूप में केन्द्र सरकार ने 10 प्रतिशत मंहगाई राहत की घोषणा की है केन्द्र सरकार की मंशा पर सवालिया निशान लग गया है।

लेखक डाॅ. सत्यनारायण जटिया भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता, पूर्व केन्द्रीय श्रम मंत्री एवं सांसद हैं।

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