भोपाल। इन दिनों ग्वालियर चंबल संभाग में जो चर्चा का विषय है वह यह है कि क्या यशोधरा के रिक्त स्थान को भरने और ग्वालियर में यशोधरा राजे के खेमे की कमान सम्हालने अक्षय राजे आ सकते हैं ओर उन्हें आना भी चाहिए।
यशोधरा ने ग्वालियर में जो नेटवर्क खड़ा किया है, अपनी टीम बनाई है, अधिकतर भाजपायी उन्हें अपने नेता के तौर पर स्वीकारने लगे हैं। इन हालातों में जमे-जमाए क्षेत्र को छोडऩा क्या उचित होगा? वैसे भी यदि क्षेत्र एक बार खाली करा दिया जाता है तो दूसरा नेतृत्व तत्काल पनप कर उस क्षेत्र को अपने कब्जे में कर लेता है।
इन हालातों में यशोधरा को पुन: ग्वालियर से जमने में बेहद कठिनाई का सामना करना पड़ेगा। अक्षय राजे को लेकर जो हलचल मची है उसकी वजह है उनके द्वारा ग्वालियर में ट्वेंटी-20 क्रिकेट स्पर्धा का भव्य आयोजन किया जाना।
ग्वालियर जिले के लिए उनके नेतृत्व में क्रिकेट स्पर्धा का आयोजन किया जा रहा है जिसमें ग्वालियर के सभी वार्डों की टीमें खेलेंगी। जाहिर है लोकसभा चुनावों के ऐन पहले होने वाली इस क्रिकेट स्पर्धा से खलबली तो मचनी है और इसे इस बात से जोड़कर देखा जा रहा है कि संभवत: यह अक्षय राजे के लोस चुनाव लडऩे की तेयारी है।
पत्रकारों के द्वारा इस बाबद अक्षय से सवाल पूछे जाने पर उन्होंने विनम्रता से कहा कि खेल को राजनीति से जोड़ा जाना उचित नहीं है। बताना मुनासिब होगा कि इसका आयोजन पहले यशोधरा करती थीं मगर उन्होंने अब इसकी बागडोर अक्षय के कंधों पर डाल दी है। और इससे ये माना जा रहा है कि राजे के काम को न केवल अक्षय आगे बढ़ाएंगे बल्कि ग्वालियर में राजे के खाली स्थान को भी भर सकते हैं।
एक आरोप यह भी उछाला कि अक्षय राजनीति में नए हैं तथा पार्टी के लिए उनका योगदान क्या है? जबकि हकीकत यह है कि यशोधरा के2008 के दोनों लोकसभा चुनावों में अक्षय ने जबरदस्त मेहनत की और पांव-पांव पूरा क्षेत्र नापा था।
ठीक इसी तरह 2008 में शिवपुरी के विधानसभा चुनावों में माखनलाल राठौर को जिताने में यशोधरा के बाद एक मात्र योगदान अक्षय राजे का है और खुद भाजपा तथा नगर की जनता इसे जानती है कि एक-एक गली और मोहगा उन्होंने न केवल पैदल नापा बल्कि जबरदस्त मेहनत कर माखनलाल की जीत पक्की कराने में अतुलनीय योगदान दिया।
हालिया विधानसभा चुनावों में अक्षय ने अपनी मॉं के साथ जिस तरह कंधा से कंधा मिलाकर शिवपुरी में धुंआधार दौरे ओर प्रचार किया, सुदूर क्षेत्रों में जाकर भाजपा के लिये वोट बटोरे, भाषण और व्यवहार से लोगों का दिल जीता, माताओं बहनों का दुलार पाया वह उनकी राजनैतिक परिपक्वता का परिचय देता है। इन हालातों में कैसे कहा जा सकता है कि वे राजनीति में नौ सिखिये हैं। वैसे भी एक समय प्रत्येक राजनेता राजनीति में नया ही होता है।