नई दिल्ली। सार्वजनिक कर्मचारियों के चुनाव लड़ने पर पाबंदी संबंधी सरकार के नियम आज उस समय न्यायिक समीक्षा के दायरे में आ गये जब उच्चतम न्यायलय इसकी वैधानिकता पर विचार के लिए तैयार हो गया। न्यायालय ने इस मामले में केन्द्र सरकार और निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किये हैं।
प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की खंडपीठ ने इंडियन ऑयल आफीसर्स एसोसिएशन और अन्य याचिकाकर्ताओं की याचिका पर केन्द्र और निर्वाचन आयोग से जवाब तलब किये हैं। याचिका में उठाये गये मुद्दे पर सहमति व्यक्त करते हुये न्यायाधीशों ने सवाल किया, ‘आप लोगों ने चुनाव की पूर्व संध्या तक क्यों इंतजार किया और क्या इस तरह के मसले उठाने के लिये यह सही समय है?’ याचिका में अनुरोध किया गया है कि उन्हें चुनाव लड़ने की अनुमति देने का निर्देश दिया जाये।
वरिष्ठ अधिवक्ता के के वेणुगोपाल ने कहा कि विभिन्न सार्वजनिक उपक्रमों में आचरण्, अनुशासन और अपील के नियम संसद द्वारा बनाये गये कानून नहीं है और इसे असंवैधानिक घोषित करके निरस्त किया जाना चाहिए। याचिका में कहा गया है कि सार्वजनिक उपक्रमों के अधिकारियों के चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाने संबंधी इन नियमों से संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 के अनुरूप नहीं है क्योंकि ये लोकतांत्रिक व्यवस्था के बुनियादी ढांचे के खिलाफ हैं।
याचिका के अनुसार ये अधिकारी सुशासन मुहैया कराने में सक्षम हैं और इन्हें चुनाव लड़ने से वंचित करना तर्कसंगत नहीं है। याचिका में कहा गया है कि विभिन्न विश्वविद्यालयों में कार्यरत प्रफेसरों को चुनाव लड़ने की इजाजत है। (एजेंसी)