एक न्यायालयीन प्रकरण को लेकर अध्यापकों में मची हलचल

भोपाल। वर्ष 2001 अर्थात शिक्षाकर्मियों के नियमितीकरण दिनांक से अध्यापक संवर्ग का लाभ दिये जाने बाबद् न्यायालयीन प्रकरण को लेकर जिले सहित पूरे प्रदेश में हलचल मची हुई है।

माननीय न्यायालय इन्दौर खण्डपीठ की याचिका क्र.डब्लू.पी.602/2010 मोहनलाल एवं अन्य द्वारा दायर याचिका के आर्डर दिनांक 22.1.2010 के आधार पर एवं माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर की याचिका क्र. डब्लू.पी. 8292/2013,एवं डब्लू.पी. 12322/2013 के द्वारा बालाघाट छिन्दवाड़ा एवं अन्य जिले में कुछ अध्यापकों को संविलियन दिनांक 2007 के स्थान पर शिक्षाकर्मी के नियमितीकरण दिनांक वर्ष 2001 से लाभ दिया जा रहा है।

उक्त न्यायालय के प्रकरण के आधार पर 2001 से अध्यापक संवर्ग के वेतनमान का एरियर्स, वेतनवृद्वि आदि का लाभ दिया जा रहा है। उक्त सम्बंध में राज्य अध्यापक संघ मप्र के जिला शाखा मंडला अध्यक्ष डी.के.सिंगौर ने जिले के अध्यापकों को अगाह करते हुये बताया है कि न्यायालय द्वारा ऐसा कोई आर्डर मेरिट पर जारी नहीं हुआ है यद्यपि उक्त प्रकरणों में न्यायालय ने सरकार को यह जरूर कहा है कि वह याचिकाकर्ताओं के अभ्यावेदन पर विचार करे लेकिन शासन ने अभी तक उक्त प्रकरण पर कोई निर्णय नहीं लिया है।

जिला शाखा अध्यक्ष ने बताया कि यह लाभ अध्यापकों को तभी दिया जा सकता है जब शासन अध्यापक भर्ती नियम 2008 में संशोधन करे। जिला शाखा अध्यक्ष ने अध्यापकों को अगाह किया है कि न्यायालय से 2001 से अध्यापक संवर्ग के लाभ की मांग करने का कोई तार्किक और वैधानिक आधार ही नहीं बनता है अतः ऐंसें किसी निर्णय की अपेक्षा न तो न्यायालय से और न ही सरकार से की जा सकती है अतः उक्त प्रकरण पर जिन भी अध्यापकों को लाभ दिया गया है उनकी वसूली तय है इसलिये ऐसा किसी भी प्रकार का अनुचित लाभ लेना ठीक नहीं है।

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