जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने शिवराज सरकार से पूछा है कि वो पिछले तीन सालों से मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति क्यों नहीं कर रहे हैं। शीघ्र नियुक्ति करें एवं 22 फरवरी को हाईकोर्ट को अवगत कराए।
मामले पर सोमवार को सुनवाई के दौरान शासकीय अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि अभी विस अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति होना शेष है। इसके बाद ही सरकार इस मामले में कोई निर्णय लेगी। नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के डॉ. पीजी नाजपाण्डे ने याचिका दायर कर बताया कि प्रदेश में तीन साल से आयोग के चेयरमैन का पद खाली पड़ा है। याचिका में बताया गया कि 14 अगस्त 2010 को जस्टिस डीएम धर्माधिकारी इस पद से सेवानिवृत्त हुए थे।
अध्यक्ष की अनुपस्थिति में कार्यकारी अध्यक्ष काम कर रहे हैं। अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं होने से कई जटिल मामले लंबित हैं। याचिका में कहा कि नागरिकों के अधिकारों का हनन रोकना ही आयोग का काम है। आयोग में अधिकतर महिला उत्पीड़न, पुलिस प्रताड़ना, जातिगत भेदभाव जैसे गंभीर मामले आते हैं। याचिकाकर्ता ने राज्य सरकार को पत्र लिख कर आयोग में पूर्णकालिक अध्यक्ष नियुक्त करने की मांग की थी।
अब तक इस मामले में सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। आयोग में कुल पांच सदस्य होते हैं। इसका चेयरमैन किसी भी प्रदेश का सेवानिवृत्त चीफ जस्टिस होता है। इसके अलावा हाईकोर्ट का रिटायर्ड जज, वर्तमान या सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश सहित दो अन्य सदस्य होते हैं। आयोग के चेयरमैन का चुनाव राज्य सरकार की कमेटी करती है। प्रदेश का मुख्यमंत्री कमेटी का अध्यक्ष होता है।
समिति में विधानसभा अध्यक्ष, गृह मंत्री और नेता प्रतिपक्ष होते हैं। याचिका में कहा गया कि राज्य सरकार को नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की चिंता होनी चाहिए। कार्यकारी अध्यक्ष के पास उतने अधिकार नहीं होते, जितने पूर्णकालिक अध्यक्ष के पास होते हैं। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्त अजय रायजादा ने पैरवी की।