नहीं छोड़ेंगे खदानों का खेल: एनजीटी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची शिवराज सरकार

भोपाल। एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) द्वारा सभी प्रकार के खनिज उत्खनन के लिये पर्यावरणीय एनओसी अनिवार्य किये जाने के बाद अब राज्य सरकार एनजीटी के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई है।

राज्य सरकार का तर्क है कि एनजीटी के इस आदेश से राज्य सरकार को जहां करोड़ों रुपये के राजस्व की हानि होगी, वहीं अवैध खनन को बढ़ावा भी मिलेगा। दरअसल एनजीटी ने पिछले दिनों निर्णय पारित कर सरकार को आदेश दिये थे कि अब किसी भी प्रकार के खनिज उत्खनन के लिये पर्यावरण मंत्रालय द्वारा गठित सेंट्रल एंवायरमेंटल एंपेक्ट असेसमेंट कमेटी (सिया) से पर्यावरणीय अनुमति लेना आवश्यक है।

हालांकि राज्य सरकार ने गौण खनिज को छोड़ कोयला, अभ्रक, मेंग्नीज तथा अन्य प्रकार के खनिजों के उत्खनन पर इस प्रकार की एनओसी पहले से ही अनिवार्य कर रखी है। परंतु अब एनजीटी के नये आदेश के बाद गौण खनिज जैसे रेत, गिट्टी, मुरम, बोल्डर जैसे खनिज भी इसके दायरे में आ गये हैं।

एनजीटी के नये आदेश के मुताबिक छोटी खदानें भी एनओसी के बिना संचालित नहीं की जा सकेंगी। इधर सरकार का मत है कि एनजीटी के ताजा आदेश के बाद राज्य सरकार को करोड़ों की हानि तो होगी ही, साथ ही अवैध उत्खनन को बढ़ावा भी मिलेगा।

सूत्रों के अनुसार राज्य सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपील में सरकार ने 5 एकड़ तक की गौण खनिज की खदानों को पर्यावरणीय एनओसी से मुक्त रखने का आग्रह किया है। राज्य सरकार का कहना है कि मध्यप्रदेश में गौण खनिज की छोटी-छोटी खदानों की संख्या अधिक है तथा राज्य सरकार को खनिज मद में सबसे ज्यादा राजस्व इंहीं खदानों से प्राप्त होता है। सरकार के अनुसार यदि छोटी खदानों के लिये भी एनओसी अनिवार्य कर दी जाती है तो खदान संचालक खदानें ही बंद कर देंगे तथा फिर यह अवैध रूप से खनन करेंगे, जिससे इनसे प्राप्त होने वाले करोड़ों रुपये के राजस्व से सरकार को वंचित होना पड़ेगा।

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