झाबुआ की चंद्रेश कुमारी से शादी के बाद पता चला वो 'गे' है

अजमेर। हमारे देश में बेशक आधिकारिक तौर पर राजशाही अब खत्म हो चुकी है, लेकिन आज भी इन राजघरानों से जुड़े लोगों के बारे जानने के लिए हर कोई उत्सुक रहता है।

23 सितंबर 1965 को महाराजा रघुबीर सिंह जी राजेंद्र सिंह जी साहेब के घर में एक लड़के का जन्म हुआ। अजमेर में जन्मे इस बालक का नाम मानवेंद्र रखा गया। उसकी जिंदगी भी आम पुरुषों के समान चलती रही। बाम्बे स्कॉटिश स्कूल और अम्रुतबेन जीवनलाल कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स, मुंबई से पढ़ाई करने के बाद। 1991 में मध्यप्रदेश के झाबुआ की चंद्रेश कुमारी से विवाह होने के बाद उनकी जिंदगी में तूफान आ गया।

राजकुमार कहते हैं कि मैने सोचा था कि शादी के बाद मेरी जिंदगी में सब सामान्य हो जाएगा, क्योेकि न तो मैं कभी ये जान पाया और न ही मुझे किसी ने बताया कि मैं गे हूं और यह एक सामान्य बात है। समलैंगिकता कोई बीमारी नहीं है। मुझे इस बात का बहुत दुख है कि मैंने उसकी जिंदगी बरबाद कर दी। मुझे इस बात की ग्लानि है।

शादी के बाद जब राजकुमार ने अपनी पत्नी को गे होने की बात बताई तो उनका तलाक हो गया। शादी के मात्र एक साल बाद 1992 में तलाक होने के बारे में राजकुमार कहते हैं कि यह बहुत बड़ी त्रासदी थी, मैं पूरी तरह फेल रहा। मैने यह महसूस किया किया कि मैंने शादी करके बहुत बड़ी गलती की।

2002 में उनके बीमार होने के दौरान डॉक्टरों ने उनके परिवार को मानवेंद्र के समलैंगिक होने की बात बताई। 2006 में पहली बार उन्होंने पहली बार सार्वजनिक रूप से स्वीकर किया कि वो समलैंगिक हैं। 14 मार्च 2006 को उनके समलैंगिक होने की बात देश ही नहीं दुनिया में सुर्खियां बनी। इसके बाद उनके परिवार में ही उनका जमकर विरोध हुआ। गुजरात के राजपीपला में जहां के वे राजकुमार हैं उनका जमकर विरोध हुआ। यहां तक कि उनके पुतले भी जलाए गए।

इसी के बाद से सिर्फ गुजरात ही नहीं अब देश-विदेश में भी मानवेंद्र ‘गे’ प्रिंस के रूप में पहचाने जाने लगे हैं। वे समलैंगिकों के हितार्थ कुछ न कुछ काम करते ही रहते हैं। पिछले वर्ष उन्होंने राजपीपला में 2011 में समलैंगिकों के लिए एक वृद्धाश्रम भी स्थापित किया। इस आश्रम का नाम अमेरिकन लेखिका ‘जैनेट’ पर रखा गया है। यह भारत ही नहीं बल्कि पूरे एशिया का पहला ‘गे’ आश्रम है।


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