एक रोटी नहीं है, तो क्या हुआ ?

राकेश दुबे@प्रतिदिन। चुनावी लोलीपोप साबित होंगे, केंद्र और राज्य सरकारों के खाद्य सुरक्षा के वादे| आंकड़ों में उलझकर रह जाएगी गरीबों की रोटी| यह किसी प्रतिपक्षी नेता का बयान नहीं हकीकत है|

जिस पर केंद्र और राज्य सरकार के वे कारिंदे फिर से कसरत कर रहे हैं, जिन्होंने सरकार को यह “वोट जुगाडू” फार्मूला दिया था| महंगाई और उत्पादन में कमी ने उनके पहले के अनुमानों को ध्वस्त कर दिया है |

इन्हीं आंकड़ेबाजों का अब तर्क है कि कीमतें बढने के साथ खाद्यान्न की उपलब्धता प्रति व्यक्ति घटती जा रही है| 2010 में यह उत्पादन आंकड़ा घटकर 196 ग्राम रह गया था, अब तो यह और भी घट गया होगा |2020 में क्या होगा यह एक चिंता का विषय है| यूनिसेफ के आंकड़े जो तस्वीर भारत की दिखा रहे वह हिला देने के लिए काफी है| यूनिसेफ की माने तो कुपोषण के कारण भारत में रोजाना 5000 बच्चे मौत के मुंह जा रहे है| हमारे देश की इसकी कमीज़ मेरी कमीज़ से सफेद कैसे हो में लगी है| भाजपा शासित और कांग्रेस शासित नया बटवारा आदमी का|

जरा सोचिये, देश के 36 करोड़ लोग शासकीय आंकड़ों के अनुसार गरीबी की रेखा के नीचे हैं दूसरे देशों की तुलना में यही ज्यादा है, हकीकत में यह आंकड़ा 46 करोड़ होता है| देश में अनाज की कोई कमी नहीं है| सरकारी वितरण और नीयत के कारण बीस करोड़ से ज्यादा लोग भूखे पेट सो रहे है और सरकारी आंकड़ों के अनुसार खाना मिला तो हिस्से में 137 ग्राम भोजन रोज़ आएगा| सब्र के अलावा कुछ नहीं किया जा सकता|


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