पढ़िए एक खबर के लिए कैसे जान जोखिम में डाल देते हैं पत्रकार

पत्रकार राजेन्द्र राजपूत
भोपाल। लोगों को पत्रकारिता ग्लेमरस जॉब लगता है। सीधे अधिकारियों से बातचीत, व्हीआईपी जोन में इंट्री और जाने क्या क्या, लेकिन इसके पीछे छिपे खतरे दिखाई नहीं देते। पत्रकार राजेन्द्र राजपूत की कहानी पत्रकारिता के खतरों को बयां करती है। कैसे जान पर बन आती है एक खबर।

पत्रकार राजेन्द्र राजपूत मध्यप्रदेश में फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी करने वाले अफसरों की लिस्ट पर काम कर रहे थे। यह मध्यप्रदेश का एक बड़ा गोलमाल है। उनके पास पूरी सूची उपलब्ध हो गई थी। इसके बाद भी शासन ने कोई कार्रवाई नहीं की। वो चाहते थे मध्यप्रदेश से ऐसे फर्जी अफसरों का सफाया हो लेकिन अफसरशाही देखते ही देखते गुंडागर्दी में बदल गई। उन्होंने चुनौती के सामने सर नहीं झुकाया, बस इसीलिए उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ी।

फर्जी जाति प्रमाण-पत्रों के संबंध में आरटीआई लगाने के लिए राजेंद्र राजपूत 12 अक्टूबर 2007 को अनुसूचित जाति विकास संचालनालय गए थे। वे कैशियर से रसीद कटवा रहे थे, इसी बीच अपर संचालक सुरेंद्र सिंह भंडारी वहां आए और उन्हें पकड़कर अपने कमरे में ले गए। वहां पहले तो भंडारी ने उनके साथ मारपीट की, फिर उन अधिकारियों को बुला लिया, जिनके बारे में राजेंद्र जानकारी चाहते थे। फिर भंडारी ने उन्हें इन अधिकारियों के हवाले कर दिया।

पत्रकार राजेंद्र राजपूत द्वारा खुदकुशी करने के पहले की गई नामजद शिकायत के चार दिन बाद भी पुलिस ने किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। मृतक ने आदिम जाति विभाग के अपर संचालक सुरेंद्र सिंह भंडारी समेत 33 लोगों के नाम सुसाइड नोट में लिखे हैं।

इतना ही नहीं, पुलिस मुख्यालय से चंद कदम की दूरी पर स्थित जहांगीराबाद थाने तक न तो 23 पेज का सुसाइड नोट पहुंचा और न ही डीजीपी को किया गया एसएमएस मिला। दूसरी तरफ पुलिस आत्महत्या के लिए प्रेरित करने वालों को पकडऩे के बजाय मृतक का ही रिकॉर्ड खंगाल रही है। इस घटना से जाहिर है कि पत्रकार राजेंद्र को आरटीआई में जानकारी मांगना और जनहित याचिका लगाना महंगा पड़ गया। मंत्रालय में मुख्य सचिव कक्ष के सामने जहर खाकर जान देने वाले व्यक्ति की जांच की रफ्तार ऐसी है कि मानो यह कोई साधारण अपराध हो। इस मामले में फर्जी जाति प्रमाण-पत्र के आधार पर सरकारी नौकरी हासिल करने वाले खांबरा बंधुओं के साथ ही आदिम जाति क्षेत्रीय विकास योजनाएं के अपर संचालक सुरेंद्र सिंह भंडारी का नाम भी आया है।

राजेंद्र के सुसाइड नोट से साफ जाहिर होता है कि फर्जी जाति प्रमाण-पत्र के मामले में भंडारी की भी भूमिका रही है। मृतक ने अपने साथ 12 अक्टूबर 2007 को हुई उस घटना का भी उल्लेख किया है, जिसमें भंडारी ने फर्जी जाति प्रमाण-पत्र धारियों के साथ मिलकर घटना को अंजाम दिया था। इसके बाद उसे लगभग दो माह तक एक खेत में बंधक बनाकर रखा गया, मगर आरोपियों के रसूख के आगे पुलिस भी नतमस्तक रही।

फर्जी जाति प्रमाण-पत्रों के संबंध में आरटीआई लगाने के लिए राजेंद्र राजपूत 12 अक्टूबर 2007 को अनुसूचित जाति विकास संचालनालय गए थे। वे कैशियर से रसीद कटवा रहे थे, इसी बीच अपर संचालक सुरेंद्र सिंह भंडारी वहां आए और उन्हें पकड़कर अपने कमरे में ले गए। वहां पहले तो भंडारी ने उनके साथ मारपीट की, फिर उन अधिकारियों को बुला लिया, जिनके बारे में राजेंद्र जानकारी चाहते थे। फिर भंडारी ने उन्हें इन अधिकारियों के हवाले कर दिया।

लात-घूसों से मारने के बाद खांबरा बंधु और उनके साथी राजेंद्र को गौहरगंज तहसील के किशनपुर गांव ले गए, जहां उन्हें लगभग दो महीने तक बंधक बनाकर रखा गया। इस दौरान आरोपियों ने राजेंद्र के साथ जोर-जबर्दस्ती कर कुछ कोरे कागजों और स्टाम्प पर हस्ताक्षर करा लिए। 23 नवंबर को आरोपियों के चंगुल से छूटने के बाद राजेंद्र ने पुलिस में भी शिकायत की लेकिन उन्हें गोविंदपुरा थाने से तत्कालीन टीआई राजकुमार शर्मा ने भगा दिया। बाद में राजेंद्र ने भंडारी और खांबरा बंधुओं की करतूत अपने वकील के माध्यम से हाईकोर्ट तक पहुंचाई। राजेंद्र ने अपने सुसाइड नोट में लिखा है कि भंडारी इतना चालाक और षड्यंत्रकारी है कि उसने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर मेरे खिलाफ ही तत्कालीन अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (शहर) को शिकायत कर दी। इतना ही नहीं, उसने राजेंद्र के साथ हुई अपहरण और मारपीट की रिपोर्ट ही नहीं लिखने दी।

मृतक ने अपनी इस पीड़ा का इजहार इस रूप में किया है कि एक जनहित याचिका कर्ता एवं शिकायत कर्ता को पुलिस का संरक्षण नहीं मिल रहा है, जबकि सभी फर्जी लोग दबंग, प्रभावशाली, धनी, बाहुबल और सरकारी कर्मचारी हैं। इसलिए उनकी सुनवाई नहीं हो रही है और वह इनकी प्रताडऩा, अत्याचार, षड्यंत्र और धमकी से तंग आकर आत्महत्या करने को बाध्य हो रहा है।

ये केस लगाए गए राजेंद्र राजपूत परः  हरियाणा के सोनीपत में शैलेंद्र खामरा ने मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया। क अक्टूबर 2012 में दर्शन खांबरा ने मेडिकल में एडमिशन के नाम पर 5 लाख रुपए लेकर गोविंदपुरा थाने में केस दर्ज कराया। 2 नवंबर 2012 को हाईकोर्ट में पीआईएल की हियरिंग थी। उससे पहले ही 24 अक्टूबर को राजेंद्र को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। उसी दौरान सोनीपत के केस में राजेंद्र को सोनीपत भी ले जाया गया। 17 मार्च 2013 को राजेंद्र जेल से जमानत पर बाहर आए।

क्यों बुलंद हैं भंडारी के हौसले
सुरेंद्र सिंह भंडारी मूलत: उत्तराखंड का रहने वाला है। वह आदिम जाति विभाग में द्वितीय श्रेणी अधिकारी के पद पर भर्ती हुआ था और जोड़-तोड़ कर अपर संचालक के पद तक पहुंच गया। सरकारी नौकरी में आने के बाद भी उसकी प्रवृत्ति अपराधियों जैसी है। हर बार उसे अपने राज्य के पुलिस अधिकारियों की लॉबी का पूरा समर्थन मिलता रहा। इस कारण कभी भी पुलिस में उसके खिलाफ कोई प्रकरण दर्ज नहीं हुआ। जब-जब विवाद हुए तो उलटे भंडारी ने ही फरियादी को आरोपी बना दिया। ऐसे एक नहीं, कई मामले हैं भंडारी के खिलाफ।

प्रताड़ित किया था- 33 लोगों के खिलाफ स्पष्ट सबूत होने और उनके कारण पति के द्वारा आत्महत्या करने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। फर्जी जाति प्रमाणपत्रों से नौकरी करने वालों को एसएस भंडारी बचा रहा है और हमें लगातार प्रताडि़त भी कर रहा है। रजनी राजपूत, मृतक की पत्नी।


आरोपियों को जेल भेजा जाना चाहिए- जहां फर्जी सर्टिफिकेट से लोग नौकरी कर रहे थे, वहां पर राजेंद्र के खिलाफ केस दर्ज किए गए। मैंने कई केसों में जमानत कराई है और ये सब केस पीआईएल लगाने के बाद दर्ज हुए हैं। फर्जी सर्टिफिकेट से प्रथम और द्वितीय श्रेणी की नौकरी प्राप्त की गई। इन सब लोगों को जेल जाना चाहिए। हाईकोर्ट में जनहित याचिका लगी है तो ये जारी रहेगी। उनके परिवार का कोई भी सदस्य इसे आगे चला सकता है।
अजयपाल सिंह, एडवोकेट, जबलपुर।

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