मात्र 2 प्रतिशत वोट निभाएंगे निर्णायक भूमिका

भोपाल। मध्यप्रदेश में चुनावी रिकार्ड के आंकड़े बताते हैं कि सरकार किसी की भी बनी हो लेकिन कांग्रेस एवं भाजपा के बीच हमेशा कांटे की टक्कर रही है, हालांकि कुछ अन्य दलों ने वोटों में सेंधमारी कर चुनावी गणित को गड़बड़ किया है।

मध्यप्रदेश में पिछले सात चुनावों के आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि कांग्रेस और भाजपा के बीच मतों का अंतर दो बार को छोड़कर कभी भी छह प्रतिशत से अधिक नहीं रहा जबकि अन्य दल लगभग 20 प्रतिशत तक मत लेकर चुनावी गणित गड़बड़ाते रहे हैं।

वर्ष 1977 में जनता पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई थी लेकिन उसमें हुई आपसी खींचतान के चलते उससे जल्दी ही जनता का मोह भंग हो गया और वर्ष 1980 में हुए विधान सभा चुनाव में अविभाजित मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने 47.51 मत प्राप्त कर दो तिहाई बहुमत से सरकार बनाई थी जबकि भाजपा को 30.34 प्रतिशत मत मिले थे और अन्य दल एवं निर्दलियों ने 22.15 प्रतिशत मतों पर कब्जा किया था।

इसी प्रकार वर्ष 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की शहादत के बाद वर्ष 1985 में हुए विधान सभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस सरकार बनाने में सफल रही और उसे 48.57 प्रतिशत मत मिले जबकि भाजपा 32.47 प्रतिशत मत ही प्राप्त कर सकी। इस चुनाव में अन्य दल एवं निर्दलीय 18.96 मत ही प्राप्त कर सके।

पिछले सात चुनाव में वर्ष 1980 एवं 1985 के चुनाव ही ऐसे चुनाव रहे जब दो प्रमुख दलों के बीच मतों का अंतर क्रमश: 17.17 एवं 16.10 प्रतिशत रहा जबकि अन्य चुनाव में यह अंतर छह प्रतिशत से अधिक नहीं रहा। वर्ष 1990 में केन्द्र में राजीव गांधी के खिलाफ बोफोर्स मामले के प्रभाव के चलते कांग्रेस के प्रति नाराजगी का असर मध्य प्रदेश में भी दिखाई पडा और वर्ष 1985 में 48.57 प्रतिशत मत प्राप्त करने वाली कांग्रेस 33.49 प्रतिशत मतों पर सिमट कर सत्ता से बाहर हो गई जबकि भाजपा पहली बार 39.12 प्रतिशत मत प्राप्त कर स्वयं के बूते पर सत्ता में आने में सफल रही। इस वर्ष अन्य एवं निर्दलीय 26.39 मत प्राप्त कर सके थे।

छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी ढांचा ढहाये जाने के बाद उपजे दंगों के चलते भाजपा सरकार को भंग कर दिया गया तथा इसके बाद भाजपा को पूरा भरोसा था कि सहानुभूति मतों के चलते वह दुबारा सत्ता पाने में सफल होगी लेकिन वर्ष 1993 में हुए विधान सभा चुनाव में कांग्रेस भाजपा से दो प्रतिशत अधिक मत पाने में सफल रही और सत्ता में आ गई। वर्ष 1993 में कांग्रेस को 40.79 प्रतिशत मत मिले जबकि भाजपा 38.82 प्रतिशत मत प्राप्त कर सत्ता से बाहर हो गई। अन्य दल एवं निदलीयों को 20.39 प्रतिशत मत मिले।

वर्ष 1998 में भी यही कहानी दोहराई गयी तथा केवल 1 दशमलव 25 प्रतिशत मतों के अंतर से कांग्रेस एक बार फिर सत्ता में आने में कामयाब रही थी। इस वर्ष कांग्रेस को 40.79 प्रतिशत मत मिले जबकि भाजपा को 38.82 मत ही मिल सके। अन्य दल एवं निर्दलियों ने 20.39 प्रतिशत मत प्राप्त कर भाजपा का गणित पूरी तरह गड़बड़ा दिया।

कांग्रेस के दस वर्ष के शासनकाल के दौरान बिजली पानी एवं सड़क की समस्याओं से परेशान प्रदेश की जनता ने एक बार फिर भाजपा में अपना भविष्य देखा और उसे दो तिहाई बहुमत दिया। उस समय भाजपा को जहां 42.50 प्रशित मतदाताओं ने अपना समर्थन दिया वहीं कांग्रेस का मत प्रतिशत 37.70 ही रह सका जबकि अन्य दल एवं निर्दलीय 19.80 प्रतिशत मत प्राप्त कर सके।

वर्ष 2008 में भाजपा के मतों में भी लगभग पांच प्रतिशत की गिरावट आई ,लेकिन वह कांग्रेस से लगभग पांच प्रतिशत अधिक मत प्राप्त कर एक बार फिर सत्ता में आने में कामयाब रही। इस वर्ष भाजपा को जहां 37.70 प्रतिशत मत मिले वहीं कांग्रेस को 32.40 मत प्राप्त कर सत्ता से बाहर बैठना पडा। इस चुनाव में अन्य दल एवं निर्दलियों ने अपने मतों के प्रतिशत में बढोत्तरी करते हुए 29.90 प्रतिशत मत प्राप्त किये।

अब इस साल आगामी 25 नवंबर को यहां विधान सभा चुनाव होने जा रहे हैं और पिछले चुनाव परिणामों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि जो भी दल दूसरे के मुकाबले दो से पांच प्रतिशत अधिक मत प्राप्त करेगा वह सत्तासीन होने में कामयाब हो सकता है।
(एजेंसी)

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