अलग थलग पड़े आसाराम, आखाड़ा ने कहा 'संत समाज को बदनाम किया'

भोपाल। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद और अन्य संतों ने गिरफ्तारी के बाद आसाराम के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत ज्ञानदास ने कहा है कि आसाराम संत के नाम को बदनाम कर रहा है।

ऐसे व्यक्ति को प्राचीन कानूनों के हिसाब से सार्वजनिक दंड मिलना चाहिए। गंगासागर से फोन पर श्रीमहंत ज्ञानदास ने कहा कि इस व्यक्ति ने देश में 400 आश्रम बनाए हैं।

संत शब्‍द का ना हो प्रयोग
आसाराम पर साधुओं के डेरे कब्जाने का आरोप लगाते हुए श्रीमहंत ज्ञानदास ने कहा कि वह कोई संत नहीं। वास्तव में किसी को भी अपने नाम के साथ संत शब्द का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

अखाड़ा परिषद शीघ्र एक बैठक बुलाएगी और उन लोगों को चिन्हित करेगी जो संतई के नाम पर धर्म का उपहास उड़ा रहे हैं। आसाराम को संत जगत में न कभी सम्मान मिला न आगे मिलेगा।

समूचा भगवा जगत आहत
अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री श्रीमहंत हरिगिरि ने कहा कि अच्छा होता यदि जांच पूरी होने के बाद आसाराम के खिलाफ कार्रवाई की जाती। घटनाक्रम से देश का समूचा भगवा जगत आहत है।

बालिका जैसा कह रही है यदि वह पूरी तरह सत्य पाया जाता है तो आसाराम को कड़ा दंड मिलना चाहिए। अपराधी को लेकर न तो धर्म आड़े आता है और न राजनीति।

बापू शब्द हटाओ
प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच के बाद सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। अभा संत समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता बाबा हठयोगी ने मांग की है कि आसाराम के नाम के पहले लगाया गया संत तथा अंत में लगाया गया बापू शब्द हटाया जाना चाहिए। कहा कि ऐसे लोगों देश का संत जगत कभी सम्मान नहीं देगा।

जयराम पीठाधीश्वर ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी ने कहा कि राजस्थान सरकार पूरी जांच के बाद ही कार्रवाई कर रही है। आसाराम को लेकर संत जगत इस समय उनके साथ नहीं है।

कानून से बड़ा नहीं संत
यदि वे निर्दोष पाए जाते हैं तो यह भी न्याय व्यवस्था की जीत होगी। देश के कानून से बड़ा कोई संत नहीं है। बैरागी संत दुर्गादास, बिहारीशरण दास, नारायण पटवारी, राजेंद्र दास आदि ने भी आसाराम की गिरफ्तारी का स्वागत किया।

गिरफ्तारी पर भी धर्म जगत में हलचल नहीं
आसाराम बापू की गिरफ्तारी पर धर्म जगत में कोई हलचल नहीं है। न किसी ने कहीं बैठक की और न कहीं प्रदर्शन हुआ। अधिकतर संत इनके बारे में बोलने से बचते रहे।

आसाराम बापू का हरिद्वार से सीमित रिश्ता रहा है। जब वे बड़ा नाम बन गए तब उन्होंने अखाड़ों, आश्रमों अथवा मठों के संतों से कोई संबंध नहीं रखा। टाटवाले बाबा ने भी आसाराम को दीक्षा देने से इनकार कर दिया था।

हरिद्वार में किसी को भी आसाराम ने दीक्षित नहीं किया। चूंकि वर्ष में एक बार आकर वे जरूर अपनी ढपली अलग बजाते हैं। अत: संकट की इस घड़ी में किसी ने उनके लिए न बैठक की और न कोई विज्ञप्ति जारी की।

आसाराम के हरिपुर कलां स्थित आश्रम में उनके भक्तों की भजन गाथा चलती रही। यह क्षेत्र भी संत बाहुल्य है। लेकिन सप्तसरोवर, भूपतवाला, खड़खड़ी, कनखल आदि संत क्षेत्रों की भांति इस क्षेत्र में भी कोई हलचल नहीं रही।


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