प्रधानमंत्री तो शायद ऐसे नहीं होते ?

राकेश दुबे@प्रतिदिन। आज मनमोहन सिंह बेहद निराश दिखे| उन्होंने यह मान लिया है की वे प्रधानमंत्री के रूप में थक चुके हैं | अगली कमान वे राहुल गाँधी के हाथ में सौपने ही नहीं उनके अधीनस्थ काम करने को तैयार है |

दूसरी ओर कुछ विरोध के बाद लगभग तय हो गया है कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे | राहुल गाँधी निरपेक्ष दिखने की कोशिश कर रहे है | भारत की वर्तमान चुनाव पद्धति में ऐसे न तो प्रधानमंत्री  चुने  जाते हैं और न वर्तमान प्रधानमंत्री की तरह निराश ही होते हैं |

भारतीय राजनीति इस चुनाव में जिस  दिशा में जा रहे है, वह अध्यक्षीय प्रणाली की और संकेत है | भारत के संविधान को संसद के बाहर से बदलने की कोशिश है कोई भी पीछे नहीं रहना चाहता पक्ष हो या प्रतिपक्ष | यह विचारणीय प्रश्न है 60 साल में भारतीय जनता पार्टी ने “वुड बी प्रधानमंत्री” का प्रयोग किया था और आडवानी प्रधानमंत्री नहीं बन सके थे | अब दोनों इसे चुनाव जीतने का रामबाण मान बैठे है |

प्रधानमंत्री पद के लिए कुछ और भी जरूरी है, इस कसौटी पर खरे उतरने वाले इन दोनों के आलावा और भी हैं |

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