आसाराम की कुटिया देखो आखें फटी की फटी रह जाएंगी

भोपाल। क्या आपने इन्दौर में स्थित आसाराम की कुटिया को देखा है। 'कुटिया' शब्द के साथ ही ऐसा लगता है जैसे संतों को विश्राम के लिए छोटा सा शांत स्थान, लेकिन इन्दौर में कुटिया के नाम पर जो कुछ है वो किसी भी मल्टी करोड़पति के लक्झरी बंगले से कहीं ज्यादा है।

इस कुटिया में ​स्वीमिंग पुल, विदेशी पेड़, सीसी टीवी कैमरे, लक्झरी बेडरूम, लॉन और पूरे आश्रम पर नजर रखने के लिए टॉवर बनाया गया है। यह कुटिया 5000 स्वे फिट से ज्यादा इलाके में बनाई गई है और इसमें किसी भी खासोआम का प्रवेश हमेशा से ही प्रतिबंधित रहा है। तो ऐसी लक्झरी सुपर ड्यूप्लेक्स किलेनुमा कोठी को आसाराम की 'कुटिया' कहा जाता था जहां वो एकांतवास किया करते थे।

प्रशासन की 'जरीब' [जमीन नापने की जंजीर] से शनिवार को इंदौर के खंडवा रोड स्थित आसाराम आम का चप्पा--चप्पा नाप दिया गया। सरकारी नपती के बहाने पहली बार आसाराम की कुटिया का नजारा भी आम हो गया। आसाराम और नारायण साई के एकांतवास की गवाह रही 'कुटिया' अच्छे खासे बंगलो को भी मात दे रही थी।

'बापू' के इस आरामगाह में ऐशोआराम की तमाम सुविधाओं के साथ स्वीमिंग पूल भी बना था। आश्रम के पश्चिमी कोने में बनी इस कुटिया का वैभव देख अधिकारियों की आंखें भी फटी रह गई। हालांकि आसाराम के 'सेवादारों' के आगे अधिकारियों की भी नहीं चली। आसाराम के बंगलों की बाउंड्री के बाहर ही एसडीएम, टीआई और तहसीलदार समेत प्रशासन की पूरी टीम के जूते उतरा लिए।

शासन से लीज पर ली गई जमीन के हिसाब--किताब की जांच करने शनिवार सुबह सा़ढे दस बजे जिला प्रशासन का अमला आम पहुंचा। टीम में एसडीएम विजय अग्रवाल, एसएलआर राकेश शर्मा, तहसीलदार पूर्णिमा सिंगी के साथ राजस्व निरीक्षकों और पटवारियों का पूरा दल शामिल था।

दिग्विजय सिंह के शासन काल में कुल 6.869 हेक्टेयर जमीन आसाराम को लीज पर दी गई थी। प्रशासन को शिकायत मिली थी कि लीज की आड़ में आसाराम के लोगों ने आसपास की सरकारी जमीन को भी दबा लिया है। साथ ही लीज-डीड में उल्लेखित शर्तो का भी उल्लंघन किया जा रहा है। शिकायत के बाद कलेक्टर ने जमीन की नपती और उपयोग की जांच आदेश देते हुए टीम को नपती के लिए भेज दिया।

राजस्व निरीक्षकों ने जरीब के जरिए आश्रम के मुख्य द्वार से जमीन की नपती शुरू की। पहले पूरे आश्रम को नापा गया। इसके बाद टीम सामने बने आसाराम गुरुकुल में पहुंच गई। दोपहर 2.40 बजे तक नपती का दौर चलता रहा। इस बीच यह तो साफ हो गया कि लीज के विपरीत आसाराम आम ने जमीन का उपयोग बदल लिया है। साथ ही नियम विरद्ध जमीन पर पक्के निर्माण और व्यवसायिक गतिविधियां भी चलाई जा रही हैं, जबकि आश्रम को सिर्फ योग केंद्र और औषधि उद्यान के लिए ही जमीन लीज पर दी गई थी।

छुपी हुई एशगाह

आम के मुख्य परिसर के पश्चिमी कोने पर गीता वाटिका नामक हिस्सा बनाया हुआ। बगीचेनुमा इस हिस्से में बड़ा गेट लगाकर प्रवेश बंद किया है। आसाराम, नारायण साई और उनके करीबी लोगों को ही इस हिस्से के अंदर दाखिल होने की इजाजत है। पेड़ों से ढंके हिस्से के पीछे की ओर आसाराम की कुटिया बनाई गई है, जो आश्रम के दूसरे हिस्सों से नजर भी नहीं आती। कुटिया से सीमेंटेड सीधा रास्ता आश्रम के बाहरी हिस्से में बने प्रवचन हॉल की व्यास पीठ की पीछे तक जाता है। जाहिर है यहां से निकलकर आसाराम और नारायण साई सीधे प्रवचन हॉल में प्रकट हो सकते हैं।

ऐसी है कुटिया

-- आसाराम की कुटिया असल में करीब पांच हजार वर्ग फीट में बना ढाई मंजिला बंगलो है।
-- यह करीब सात फीट ऊंची बाउंड्रीवॉल से घिरा है
--कुटिया के कंपाउंड में प्रवेश करने के लिए सामने एक बड़ा मुख्य द्वार है
-- कंपाउंड के पिछले हिस्से और बाउंड्रीवॉल के अंदर दाहिनी ओर एक-एक छोटा दरवाजा
-- इन दोनों पिछले दरवाजों तक आम के अंदरूनी पिछले हिस्से से ही पहुंचा जा सकता है, जहां आम भक्त या लोगों का प्रवेश प्रतिबंधित है
-- कंपाउंड के बीचोबीच ढाई मंजिला आसाराम का आवास और पास ही एक मंजिला मकान है
-- आसाराम आवास की तल मंजिल पर उनका आरामगाह है, जबकि सबसे ऊपर वॉच टावर जैसी सरंचना बनी हैं, जहां पर पहुंचकर पूरे आश्रम को देखा जा सकता है
-- आसाराम की इस कुटिया के पीछे और दाएं--बाएं बगीचा बना है। पीछे के बगीचे में झूला और दो कुर्सियां लगी हैं
-- कुटिया के अंदर दाखिल होने वाले दरवाजे से लेकर दीवारों के चारों कोनों पर सीसीटीवी कैमरे भी लगे हैं
-- कुटिया के मुख्य द्वार में दाखिल होते से बाई ओर एक कार पार्किंग, जबकि दाहिनी ओर स्वीमिंग पूल भी बना हुआ है।
-- स्वीमिंग पुल में उतरने के लिए स्टील की सीढि़या तो हैं ही किनारे पर एक खास सीट भी बनी है, जो शायद संत के बैठने के लिए है।
-- आसाराम के आरामगाह के इस कंपाउंड में बगीचे को सजाने के लिए लैंडस्केपिंग की गई है।
-- आम--आंवले के पेड़ के साथ साइकस जैसे महंगे विदेशी पेड़ भी कुटिया के बगीचे में रोपे गए हैं।
-- कुटिया के पिछले दरवाजे से निकलकर सीधे बिलावली तालाब की पाल पर पहुंचा जा सकता है।

लिंबोदी से बिलावली तक आश्रम को लीज पर दी गई जमीन का एक सिरा लिंबोदी गांव से शुरू होता है, जबकि दूसरा बिलावली में जाकर खत्म होता है। लिंबोदी कांकड़ पर आम बना है। पीछे की जमीन पर कर्मचारियों के रहने के लिए कमरे बने हैं और उसके पीछे खेती की जा रही है। आसाराम के खेत बिलावली तालाब की पाल तक पहुंच गए हैं।

कार्रवाई का आधार

आम के खिलाफ पहली शिकायत 2008 में की गई थी। इसके बाद फिर 2009 में लीज और उपयोग की जांच हुई। तत्कालीन कलेक्टर ने सीमांकन का आदेश दिया, लेकिन आदेश दबा दिया गया। शनिवार की जांच से प्रारंभिक तौर पर आम पर कार्रवाई का आधार नजर आने लगा है। लीज व्यवसायिक गतिविधियों की इजाजत नहीं देती फिर भी वितरण केंद्र बनाकर उत्पाद बेचे जा रहे हैं।

दो दिन में देंगे रिपोर्ट

एसडीएम विजय अग्रवाल के अनुसार लीज पर मिली 6.869 हेक्टेयर जमीन के अलावा आसाराम द्वारा आसपास की दो एकड़ जमीन भी खरीदी गई है। इस तरह कुल करीब साढ़े आठ हेक्टेयर जमीन आम के पास होना चाहिए। नपती के बाद हिसाब होगा तो पता चलेगा कि आम के पास कितनी जमीन ज्यादा है। अभी हम यह भी देख रहे हैं कि कितने हिस्से पर निर्माण किया गया है। नपती के बाद रिकॉर्ड में यह भी जांचा जाएगा कि जमीन के उपयोग की शर्ते क्या हैं और उसका मौजूदा उपयोग किस तरह हो रहा है। दो दिन में पूरी रिपोर्ट तैयार कर कलेक्टर को सौंपी जाएगी।

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