उधार के विद्वानों के सहारे चल रही है प्रदेश की हायर एज्यूकेशन

डाँ. कमलेश कुमार पाण्डे़य। मध्य प्रदेश में उच्च शिक्षा के साथ शासन द्वारा उपेक्षात्मक रवैया अपनाया जा रहा है। विगत कई वर्षो से आयोग द्वारा प्राध्यापकों की नियुक्ति नही की गई है। केवल काम चलाऊ अतिथि विद्वान, मानसेवी, शिक्षक, अथवा जनभागीदारी से नियुक्ति देकर, अध्यापन कार्य करवा कर उन्हें मुक्त कर दिया जाता है।

आवश्यकता पडने पर पुनः उनकी नियुक्ति कर ली जाती है। यह एक अस्थायी व्यवस्था है। सरकार की इस अस्थयी व्यवस्था ने प्रदेश के उच्च शिक्षित लगभग चार हजार युवको का भविष्य अधर में लटका दिया। हम अतिथि विद्वानों ने सरकार के वित्तीय संकट को ध्यान में रखकर उच्च शिक्षित होते हुए भी कम पैसे में कार्य करते हुए सरकार का संकट की घड़ी में साथ दिया , किन्तु वही अतिथि विद्वान आज अपनी उम्र सीमा पार हो जाने के कारण अपने भविष्य को लेकर चिंतित है।

वार-वार मुख्यमंत्री एवं उच्चशिक्षा मंत्री से भविष्य की निश्चितता  के लिए गुहार लगाने पर माननीयों द्वारा भविष्य की निश्चितता का आश्वासन दिया जाता है। किन्तु उस पर अमल नही किया जाता। आज प्रदेश के सभी महाविद्यालय अतिथि विद्वानों के भरोसे चल रहे है। अतिथि विद्वान अपना कार्य निष्ठा एवं इमानदारी से करता हैं यही कारण है कि विद्यार्थी वर्ग अतिथि विद्वानो को ज्यादा सम्मान देता है। वर्तमान समय ने विद्यार्थीयो के बीच अतिथि विद्वानो को  और लोक प्रिय बना दिया है। क्योंकि महाविद्यालयों में युवा वर्ग अध्यापन करता है। और युवा वर्ग ही प्रदेश की दशा और दिशा दोनो को बदलने में सक्षम है।

वह भी प्रदेश की स्थिति को समझ रहा है। अतिथि विद्वानो के साथ सरकार ने घोर अन्याय किया है सर्वोच्च डिग्रीधारी उच्चशिक्षित  अतिथि विद्वान सरकार की शोषण कारी नीति का शिकार बनकर आज एक चाय के लिए मुहताज हो चुका है। एक दिहाडी मजदूर भी  शायद अतिथि विद्वान से ज्यादा कमाता है।  

सरकार चाहती है कि प्रदेश के युवा साक्षर रहें शिक्षित न होने पाएं नही तो शिक्षित होने पर सरकार की काली करतूतों पर उगली उठायेगें जिसके कारण सरकार मनमानी न कर पायेगी । ये सारी बाते प्रदेश के हित में नही है। इस व्यवस्था की धुरी शिक्षक है। जब वही सरकार की नीतियों से असंतुष्ट होगा तो सुधार की अपेक्षा कैसे करें ? कैसे सरकार अपनी योजनाओं, लक्ष्यों को मूर्त रूप देगी ?

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