भोपाल। वो 'बेटी बचाओ' तो याद होगा आपको, हां हां वही जिसकी सफलता के लिए शिवराज सरकार ने जी जान झोंक दी थी। हजार करोड़ के आसपास तो विज्ञापनों पर ही खर्च कर डाला था और फिर एनजीओ व सरकारी आयोजन अलग से। बावजूद इसके मध्यप्रदेश में बेटियां नहीं बचीं, अलबत्ता शिवराज सरकार ने अभियान ही बंद कर दिया। अब 'बेटी बचाओ' के नाम पर सरकार फूटी कौढ़ी खर्चने को तैयार नहीं।
प्रदेश में बेटियों की संख्या बढ़ाने के तमाम दावे गलत साबित हुए हैं। ग्यारहवी पंचवर्षीय योजना (2007-12) के दौरान मध्यप्रदेश सरकार ने दावा किया था कि प्रदेश में शिशु लिंगानुपात 932 से बढ़ाकर 950 तक ले जाया जाएगा, लेकिन प्रदेश में बेटियों की संख्या घटकर 914 पर आ गई है। वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत उनकी कैबिनेट के सदस्यों के जिलों में लाड़लियों की संख्या में खासी गिरावट आई है।
सीएम के सीहोर में पिछली जनगणना के मुकाबले प्रति हजार लड़कों पर 15 बालिकाओं की कमी हुई है। स्वास्थ मंत्री नरोत्तम मिश्रा के जिले दतिया में 18 और महिला विकास मंत्री रंजना बघेल के जिले धार में यह संख्या गिरकर 15 तक आ गई है।
आंकड़ों के अनुसार लिंगानुपात सुधारने के लिए राज्य सरकार के अलावा विभिन्न सामाजिक व गैर-सामाजिक संगठनों द्वारा चलाई गई मुहिम के उचित परिणाम सामने नहीं आए है। भिंड और हरदा जिले को छोड़कर हर जिले में बेटियों की संख्या में कमी आई है।
वर्ष 2001 के मुकाबले इन जिलों में हजार लड़कों पर लड़कियों की संख्या एक से लेकर 41 तक कम हुई है। खास बात यह है कि ये सभी वे जिले हैं, जहां सत्तारूढ़ और विपक्षी पार्टी के दिग्गजों का खासा बोलबाला है। चौंकाने वाली बात यह है कि तमाम प्रयासों के बाद मप्र शिशु लिंगानुपात के मामले में देश में 22वें स्थान पर है।
जनगणना के ताजा आंकड़ों के मुताबिक शिशु लिंगानुपात में 14 प्रतिशत की गिरावट आई है, जो राष्ट्रीय स्तर पर आई 8 प्रतिशत गिरावट से कहीं अधिक है।
पहले ही खुल चुकी थी पोल
राज्य सरकार अपनी जिस लाड़ली लक्ष्मी योजना को लेकर वाहवाही बटोर रही है, उसके बारे में 12वीं पंचवर्षीय योजना के दस्तावेज में कहा गया है कि इस महत्वाकांक्षी योजना को बेटियों की संख्या बढ़ाने में अपेक्षित सफलता नहीं मिली है। इसमें कहा गया कि लाड़ली लक्ष्मी, मुफ्त शिक्षा, भ्रूण हत्या के मामलों में सख्ती के बावजूद प्रदेश में शिशु लिंगानुपात में कोई इजाफा नहीं हो सका है।