राकेश दुबे@प्रतिदिन। इतिहास अपने को दोहराता है। भारतीय जनता पार्टी में घटा घटनाक्रम इस बात की पुष्टि करता है। आगे एनडीए में कौन रहेगा, कौन जुड़ेगा और कौन घटेगा। अलग बात है, अब आडवानी रचित यह अध्याय भी अपने अंत की ओर है।
जनसंघ से भाजपा तक की यह यात्रा जिस एक कहावत की पुष्टि करती है, वह है जैसा बोवेगे, वैसा ही काटोगे। इतिहास का निर्माण हमारे कृत्यों से होता है। जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ पंडित मौलिचन्द्र शर्मा भी थे। डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान के बाद पंडित मौलिचन्द्र शर्मा जनसंघ के अध्यक्ष थे।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर 1948 में लगे प्रतिबंध को समाप्त कराने के साथ जनसंघ को एक राजनीतिक दल के रूप में गढने में उनकी भूमिका को अब कोई याद नहीं करता। प्रो. बलराज मधोक और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के कृतित्व की चर्चा भी गाहे-बगाहे होती है। कारण उनके बाद, इस विचारधारा के महापुरुषों ने अपने कद को इनसे ऊँचा बताने की कोशिश की, और उन्हें भुलाने की।
अब इतिहास लौट रहा है,वक्त सूद समेत जो लौटा रहा है, पीड़ादायक है। अगली पीढ़ी के उत्थान में अब हमें जो कष्ट हो रहा है यह तो हमारे उन कर्मों की फसल है, जो हम बो आये थे।
संस्कार, विशेषकर इस विचारधारा में पले-बढ़े लोगों के लिए अहम है। 82 वसंतों के बाद हमारी भूमिका क्या हो ? यह हमे खुद तय करना चाहिए, हमारे परिवार को तय करना चहिये। यह तो बिलकुल अच्छा नहीं है पडौसी हमे या हमारी अगली पीढ़ी को समझाए कि हमें क्या करना चाहिए। यह बेला शांतचित्त से प्रभु स्मरण और राष्ट्र हित में लगी नई पीढ़ी को आशीर्वाद देने की है। अपनी पिछली गलतियों की क्षमा मांगने की है। किसी और के या अपने परिवार के दोष देखने की नहीं है। सनातन धर्म और हिन्दू समाज के संस्कार भी यही है।