गांववालों की सांसों में जहर घोल रहा है बालाघाट का कॉपर प्रोजेक्ट, पूरा गांव बीमार

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बालाघाट। मध्यप्रदेश के बालाघाट के एक कॉपर प्रोजेक्ट ने यहां रहने वाले लोगों का जीना दुश्वार कर दिया है। लोगों का आरोप है कि उन्हें इस खदान से निकलने वाले रासायनिक प्रदूषण से गंभीर बीमारियां हो रही है। ये खदान हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड के पास है। कंपनी पर पर्यावरण और लोगों की अनदेखी करने का आरोप लग रहा है।

दरअसल मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के मलांजखंड इलाके के छिंदीटोला गांव में बुजुर्ग अमरावती 24 घंटे दर्द से कराहती हैं। पैरों में जख्म है। ये फैलता जा रहा है। अमरावती नहीं जानती कि आखिर ये जख्म उन्हें हुआ क्यों लेकिन गांव के और लोगों के पास इस सवाल का जवाब है। इस सुनहली जमीन पर झिलमिलाता पानी, कुएं का हरा पानी, गांव वालों की माने तो पानी यहां बीमारी की सौगात ला रही है।

फोड़े से परेशान गब्बर को डॉक्टर ने बताया ये पानी से हो रहा है। इस गांव के लोग पानी का इस्तेमाल करने में डर रहे हैं। लेकिन करें क्या। कुएं और तालाब ही तो उनकी जिंदगी है। वो जाएं कहां। इनका कहना है कि हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड के मलांजखंड तांबा प्रोजेक्ट के मलबे से खतरनाक सल्फ्यूरिक एसिड उनके पानी में घुल रहा है।

ऐसा ही हाल बोरखेरा गांव में मिला। बड़े संकट से जूझ रहा है ये गांव। यहां के लोगों ने बताया कि इनके गांव में एक भी बुजुर्ग नहीं हैं। यहां जीने की उम्र ही 50 साल है। यहां तीस साल के नौजवान भी बुजुर्ग नजर आया। चेहरे पर झुर्रियां, थकी और बेबस आवाज। गांव वाले कहते हैं कि इस जहरीले पानी की नजर में सब एक जैसे हैं। जानवर, मवेशी, पेड़ पौधे, इंसान सब। पानी में जहर का असर सबपर एक जैसा। बीमारी, जख्म, दर्द और मौत। इन गांवों के हर एक के पास दर्द की एक कहानी है। बर्बाद खेती, जलते पेड़ और जहरीली जिंदगी जीने का अभिशाप है। ये अभिशप्त हैं रासायनिक मलबे और बारुद के बीच जीने के लिए लिए।

बारुद भी इस भी यहां के आबोहवा को जहरीला बना रहा है। मलांजखंड के तांबे के खदानों के लिए लाए गए बारुदों के गोदाम बनाए गए हैं इन गांवों में। बारुद छोटे कण हवा में घुल रहे हैं। खदानों में बारुद का विस्फोट इस हवा को और जहरीला बना देता है। मलांजखंड तांबा प्रोजेक्ट चलाने वाली हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड मुआवजा दे रही है। लेकिन उसपर लग रहे उन लापरवाहियों के आरोपों का क्या। जहरीले होते पानी, और हवा में फैल रहे जहर का क्या। लोगों की जिंदगी के इस खिलवाड़ का क्या। क्या इसकी भरपाई हो सकती है।


एक मोटे अनुमान की माने तो मध्यप्रदेश के मलांजखंड तांबा प्रजोक्ट के आसपास के दस किलोमीटर इलाके की जमीन और हवा जहरीली हो रही है। यही नहीं जानकारों का ये भी कहना है कि कान्हा नेशनल पार्क जैसे इलाके को भी इस प्रोजेक्ट के जहर से नुकसान पहुंच रहा है। इस बारे में हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड के अधिकारियों से भी बात करने की कोशिश की। लेकिन उन्होंने किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया।
दरअसल मध्यप्रदेश का मलांजखंड तांबा प्रोजेक्ट 480 एकड़ में फैला हुआ है।

सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड यहां के खदानों से तांबा निकालती है। जानकारों की माने तो इसके आसपास के दस किलोमीटर इलाके के 134 गांवों के 22 हजार 131 लोग इस खदान से होने वाले प्रदूषण से प्रभावित हैं। 480 एकड़ के इस खदान से रोजाना 70 टन रेत निकलती है। तांबा निकालने के लिए यहां रोज हजारों टन ग्रेनाइट पत्थर का मशीन में चूरा किया जाता है। इसमें तांबे की मात्रा बेहद कम होती है जबकि मलबा ज्यादा। इस मलबे को पानी की पाइप के जरिए खदान से तीन किलोमीटर दूर डंप किया जाता है।

आरोप है कि एक तरफ तो सल्फ्यूरिक एसिड का ढेर हवा के साथ उड़कर लोगों के खेत, शरीर, तालाब और कुंओं में जा रहा है। तो दूसरी तरफ प्रबंधन की लापरवाही से पाइप से रिस-रिस कर जहरीला पानी लोगों को चर्म रोग, हृदय रोग और पेट की बीमारी दे रहा है।

इस मलबे में मैगजीन, निकल, जिंक और मालिब्डेनम जैसे खतरनाक रसायन भी मिले हैं। ये टीला इस समय पांच करोड़ टन का मलबा समेटे हुए हैं। इसी मलबे के करीब वन भूमि भी है। इसके अलावा मलबा इस बंजर नदी में भी बहाया जा रहा है जो कान्हा नेशनल पार्क में मिलती है। मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव आर के जैन का कहना है कि कंपनी बोर्ड के दिए गए निर्देशों का पालन बहुत सुस्त ढंग से कर रही है।

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