राकेश दुबे@प्रतिदिन। कोयला घोटाले को लेकर उच्चतम न्यायालय में सी बी आई द्वारा दूसरे हलफनामे में यह कहा गया है कि रिपोर्ट में फेरबदल हुआ है । अब सरकार से कुछ कहते नहीं बन रहा है।
संसद ठप्प है, प्रधानमंत्री के इस्तीफे को लेकर भारतीय जनता पार्टी अपने वचन पर कायम है कि वह संसद नहीं चलने देगी। सवाल यह है कि जिस सरकार से प्रतिपक्ष इस्तीफा मांग रहा हो, सहयोगी जिस पर हर दिन नये लांछन लगा रहे हो। उसका क्या चलना और क्या नहीं चलना। सच बात यह है कि जो बातें इस सरकार को चलायमान कर सकती है, वे संसद में उठे पर संसद चले तब न। संसद के न चलने का फायदा भी तो सरकार को ही मिलता है।
यह साफ समझ में आने लगा है कि बजट सत्र के शेष दिन ऐसे ही गुजर जायेंगे। प्रजातंत्र भारत में जिस व्यवस्था से चलता है वह सविधान से बनती है। भारतीय संविधान कहता है कि सरकार संसद के प्रति जवाबदेह है और संसद जनता के प्रति। इस बात को कहने पर सांसद बुरा मानने लगे है और ऐसे लेखन को अपनी और संसद की अवमानना। पिछले दिनों "प्रतिदिन" के अनियमित होने पर किसी मित्र ने पूछा की क्या कोई सांसद नाराज़ हो गये है ? मेरा उत्तर था- मैं सत्य लिखता हूँ और वह मीठा नहीं हो सकता ख़ैर!
सच यह है की सरकार भाग रही है और प्रतिपक्ष उसे भागने का मौका दे रहा है । चाहे कोयला घोटाला हो,चाहे जे पि सी रिपोर्ट हो , 2जी का मामला हो या मनरेगा सभी मे सरकार की फजीहत है और ऐसी फजीहत पर कुछ लिख लिखा दिया जाये तो जनता के प्रति जवाबदार जनता को आंखे दिखाने को तैयार। ठीक है यह जनता है प्रतिपक्ष नहीं जो सरकर को नूराकुश्ती में मदद करे।