संजू बाबा ये सब “मामू” बना रहे हैं

राकेश दुबे@प्रतिदिन। संजय दत्त अपने पिता सुनील दत्त से बड़ी लकीर नहीं खींच सके| अपने पिता के कदमों पर चलकर जिस व्यवसाय में चमकें उसमें प्रसिद्धि जरुर मिली, लेकिन साथ-साथ दायित्व ठीक से न निभा पाने का की तोहमत भी|

सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद जो लोग तरह-तरह की बातें कर रहे हैं, वे संजय दत्त को बेचारा बना रहे है| दया की याचिका करने से लेकर 33 साल की उम्र में भी उसे नासमझ साबित करने से बाज़ नही आ रहे हैं| संजय दत्त अपने अभिनेता पिता सुनील दत्त और अपनी अभिनेत्री माँ नर्गिस की व्यस्तता के कारण जिस सोहबत में चले गये थे, उनके माता पिता बमुश्किल उन्हें उस दुनिया से वापिस लाये थे| उसी दुनिया का यह अगला कदम था जिसकी सज़ा उन्हें मिली है|

गिरफ्तारी के बाद जमानत के लिए परेशान स्व. सुनील दत्त ने कहाँ-कहाँ मत्था नहीं टेका| वकीलों की ड्योडी, राजनीतिक दरबार और सारे श्रद्धा केन्द्रों पर वे शीश नवाते हुए वे उज्जैन पहुंचे थे और उज्जैन में कहा था कि “ संजय को बेचारा न कहें, मेरा बेटा है, प्रायश्चित जरुर करेगा|” तब की दया की गुहारों का और अब दया की गुहारों का जो अर्थ निकलेगा वह कुछ ऐसी परम्परा डाल देगा कि भविष्य में न्यायालय के मंदिर से महत्वपूर्ण राजनीतिक चौखटें हो जाएगी और गरीब तो न्याय की आस ही छोड़ देगा|

बहुत से लोगों की दत्त परिवार के साथ श्रद्धा और शुभकामनायें हैं, संजय दत्त के साथ भी कुछ लोग उनकी गांधीगिरी के बाद जुड़े है| गाँधी से जुड़ने के पहले संजू बाबा जिनसे जुड़े उस मुकाबले में यह सज़ा कम या ज्यादा है, इसकी विवेचना तो कोई न्यायविद ही कर  सकता है, परन्तु उन आहों के मुकाबले बहुत कम है जो बम ब्लास्ट के बाद आज भी मुम्बई के आकाश में गूंज रही है| और की बात पर क्या कहें जो 33 साल की उम्र में संजू बाबा को नादान बता रहे हैं, वे निश्चित ही संजू बाबा को मामू बना रहे हैं|

  • लेखक श्री राकेाश दुबे प्रतिष्ठित पत्रकार एवं प्रख्यात स्तंभकार है।


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