भाजपा : एक केन्द्रीय आवाज़ की दरकार

राकेश दुबे@प्रतिदिन। कर्नाटक, झारखंड और अब बिहार, हर जगह भारतीय जनता पार्टी  के बगावती बिगुल बजा रहे हैं| कर्नाटक में अलग दल बन चुका है| यशवंत सिन्हा नाराज़ चल रहे हैं| बिहारी बाबुओं ने अरुण जेटली की बैठक का बहिष्कार दिया है| लाल कृष्ण आडवानी  पार्टी को एक अलग तरह कि पार्टी के नाम से परिभाषित करते थे|

वह पार्टी अब अलग-अलग तरह कि पार्टियों में बदलती दिखाई दे रही है| येदुरप्पा कर्नाटक के बाद दक्षिण के अन्य राज्यों की ओर अपने अभियान को मोड़ रहे है| यशवंत सिन्हा की नाराजी पक्रिया को लेकर है| बिहार के जिन नेताओं ने जेटली की बैठक का बहिष्कार किया है, उनके तर्क भी दमदार है कोई एक व्यक्ति पार्टी नहीं है|

नाराज़ नेता कर्नाटक के हो या झारखंड के, बिहार के या किसी उस प्रदेश के जहाँ बगावत सतह पर दिखाई नही दे रही है सबका एक ही सवाल है| केन्द्रीय नेतृत्व की परिभाषा क्या है? केन्द्रीय नेतृत्व एक व्यक्ति है या समूह ? उनके सवाल अपनी जगह ठीक है| पर आज इसका उत्तर देनेवाला कोई जवाबदार नेता नहीं दिख रहा है| अटल जी प्रत्येक घंटे के लिए ईश्वर  को धन्यवाद दे रहे है और आडवानी  की बात दिल्ली के नेता सुन नहीं रहे है| संघ की दशा और ज्यादा गम्भीर है, किसी से कहे भी तो कैसे नितिन गडकरी संघ की पसंद थे|

सच यह है कि भाजपा के पास अब कोई केन्द्रीय आवाज़ बची ही नहीं है| राजनाथ सिंह को दिल्ली वाले खानापूर्ति के लिए जरुर पार्टी का सिरमौर कह देते है, हकीकत में लोकसभा और राज्य सभा में भाजपा के नेता अपने को ही पार्टी मानते है | ऐसा भाजपा में पहले कभी नहीं हुआ ,तब भी नहीं जब वह लोकसभा में मात्र दो सांसद रखती थी| राज्यों के उभरते नेतृत्व की अनदेखी से ही बगावती भाजपाई तैयार हुए है| अफ़सोस कोई अटलजी नहीं तो आडवाणी जी जैसी आवाज़ रखता|

  • लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रख्यात स्तंभकार हैं।
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