भोपाल। मध्यप्रदेश में इन दिनों ठीक वैसा ही प्रशासनिक चुनावी प्रबंधन दिखाई दे रहा है जैसा कि कभी इंदिरा गांधी के समय दिखाई दिया करता था। सीएम के सचिवालय ने कलेक्टरों से भाजपा के ऐसे नेताओं के नाम मांगे हैं जो आगामी विधानसभा चुनावों में जिताऊ प्रत्याशी हो सकते हैं।
सामान्यत: प्रशासनिक अधिकारी चुनावों पर अपनी रायशुमारी दिया ही करते हैं और वो हमेशा अनआफिसीयल ही होती है परंतु उनकी रायशुमारी का यूज नहीं किया जाता। कम से कम भाजपा में तो यह कल्चर कतई नहीं रहा कि प्रशासनिक अधिकारियों की राय को वेल्यू दी जाए। भाजपा में वेल्यू आरएसएस के सुझावों को दी जाती है, परंतु टीम शिवराज ने भाजपा की परंपरा के इतर वही पेटर्न यूज करने का मन बनाया है जो इंदिरा गांधी यूज किया करतीं थीं।
सीएम का सचिवालय इन दिनों कलेक्टरों से रायशुमारी कर रहा है कि इलाके में जमीनी लेवल पर किस भाजपा नेता की पकड़ मजबूत है और कौन आगामी विधानसभा चुनावों में जिताऊ प्रत्याशी हो सकता है। इसके लिए बाकायदा सूची बनाई जा रही है और कई जिलों के कलेक्टर्स गंभीरतापूर्वक अपनी रिपोर्टस भी भेज रहे हैं।
ब्यूरोक्रेट्स और शिवराज सिंह की जुगलबंदी किसी से छिपी नहीं है और मध्यप्रदेश में तीसरी बार सरकार बनाने के लिए भाजपा में शिवराज सिंह को फ्रीहेंड भी मिला हुआ है अत: माना जा रहा है कि कलेक्टर्स की इस रिपोर्ट्स का बेहतर यूज किया जाएगा।
सनद रहे कि इसी तरह की प्रक्रिया इंदिरा गांधी भी आजमाया करतीं थीं। उन्होंने पीएम आफिस को देश का सबसे ताकतवर आफिस बना दिया था और पीएम आफिस का दखल भारत के सभी जिलों तक होता था। कांग्रेस में प्रत्याशियों को टिकिट से पहले संबंधित जिलों के कलेक्टर्स की रिपोर्ट पर भी गंभीरता से विचार किया जाता था, इसी प्रक्रिया के चलते कई बार कांग्रेस में इंदिरा गांधी को तानाशाह भी कहा गया।
भाजपा ने इस पेटर्न का यूज कभी नहीं किया। भाजपा का मानना रहा है कि आफिसों में बंद वरिष्ठ अधिकारियों को जमीनी स्तर की जानकारी नहीं होती जबकि आरएसएस इसका सबसे बेहतर सोर्स है। मध्यप्रदेश में भी आरएसएस की योजना से भाजपा में भेजे गए नेताओं की कमी नहीं है परंतु टिकिट वितरण में किसकी चलेगी यह तो समय ही बताएगा।