साफ कहे और साफ रहे, तो टेपिंग क्यों ?

प्रतिदिन/ राकेश दुबे/ सारी सरकारें वही करती हैं और वही कहती हैं, जो केंद्र सरकार कर रही है या हिमाचल की सरकार करगुजरी है। सनसनीखेज खबर एक दो का निलम्बन और कुछ गिरफ्तारी , फिर जस का तस। हर  सरकार की मंशा अपने विरोधियों की पूरी जानकारी अपने पास रखने की होती है। अब तो दल के भीतर भी अपने विरोधियों के राज़ मालूम करने के लिए सूक्ष्म अन्वेषी यंत्र लगाने का फैशन सा होगया है। वर्तमान राष्ट्रपति जब वित्त मंत्री थे तब उने कार्यालय में भी ऐसा ही कुछ हुआ था। अब  वीर भद्र सिंह और अरुण जेटली इस दौर से गुजर रहे हैं।

विज्ञान के विकास के साथ, मानव समाज का भी विकास हुआ और उसे अपने भविष्य की असुरक्षा का बोध ज्यादा तेज़ी से  सताने लगा। अपनी-अपनी सामर्थ्य श्रेणी के अनुरूप उसने जासूस बना। पहले मनुष्य और अब मशीन इसमें प्रयुक्त होने लगी। यह सब करने और विरोधियों के लिए करने में उसने सिद्धहस्तता हासिल की और जो दांव उसे अपने देश और उसकी अस्मिता की रक्षा के लिए खेलने थे। उनका दुरूपयोग खुद के लिए करना शुरू किया। उसी का विस्तार है यह फोन टेपिंग।

समय के साथ देश की आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से केंद्र में रहने वाली सरकारें पुलिस के माध्यम से यह सब कराने लगीं। पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर सहित कई राजनेता इस दुष्प्रयोग के शिकार हुए। अरुण जेटली ताज़ा उदाहरण है, लेकिन अंतिम नहीं क्योंकि कोई भी राजनीति में साफ नहीं कहना चाहता और साफ नहीं रहना चाहता है। दूसरे के कमीज़ पर लगे दाग देखने-दिखाने  की होड़ है , जानकारी इकट्ठी करो और वक्त आने पर अपने तनखैया मीडिया के सहारे या सरकारी एजेंसियों के माध्यम से उसका इस्तेमाल करो, मूलमंत्र  बन गया है। ऐसे में साफ कहो और साफ रहो ही श्रेयस्कर पद्धति है।
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