भोपाल। अल्ट्रासाउंड सेंटर संचालकों के टेंशन का टाइम शुरू होता है अब, क्योंकि सरकार की यह घोषणा अब सार्वजनिक की जा रही है कि लिंग परीक्षण पकड़वाने वाले को 1 लाख रुपए का इनाम दिया जाएगा। सनद रहे कि यह घोषणा पूर्व में ही की जा चुकी थी, लेकिन इसका प्रचार—प्रसार नहीं किया गया था।
आज भोपाल में हुए एक आयोजन में इस संदर्भ में जानकारी दी गई और निश्चित रूप से यह मीडिया की सुर्खियां बनने जा रहा है। जैसे जैसे लोगों को पता चलता जाएगा, लोग ऐसे तमाम डाक्टरों की खबरें लीक करना शुरू कर देंगे जहां यह दुकान संचालित हो रहीं हैं। यहां तक की मीडिया से जुड़े लोग स्टिंग आपरेशन तक कर डालेंगे। अब देखना यह है कि एक डॉक्टर प्रशासक, दूसरे डॉक्टर मुल्जिम को दंडित करेगा या नहीं। सामान्यत: ऐसी तमाम घोषणाओं को कम से कम सार्वजनिक किया जाता है ताकि लोगों को पता न चले और इस घोषणा के साथ भी यही हो रहा है।
खैर शेष समीक्षा बाद में करेंगे, पहले पढ़िए इस आयोजन का यह सरकारी प्रेस रिलीज:—
पिछले कुछ वर्षों में यकीनन भारत का हर क्षेत्र में विकास हुआ है, परन्तु स्त्री- पुरूष लिंगानुपात में तेजी से अंतर हमारे समाज की एक बडी समस्या बन गई है। समाज में लडके की चाहत में कन्या भ्रूण का गर्भ में ही निराकरण कर देने की विकृति आ जाने से लिंगानुपात में तेजी से अन्तर आया है।
लैंगिक भेदभाव कानूनन अपराध है, इसे रोकने की आवश्यकता है। यह बात आज प्रसव पूर्व एवं प्रसव पश्चात निदान तकनीकी अधिनियम के प्रचार- प्रसार के लिये कलेक्ट्रेट सभाकक्ष में संपन्न एक दिवसीय कार्यशाला में अपर कलेक्टर श्री आर.बी. प्रजापति ने व्यक्त किये।
कार्यशाला में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. वाय.एस. ठाकुर, जिला कार्यक्रम अधिकारी महिला एवं बाल विकास श्रीमती शशि उइके, जिला टीकाकरण अधिकारी, जिला स्वास्थ्य अधिकारी, श्रीमती पुष्पा मेहंदीरत्ता, कन्या महाविद्यालय सिवनी की प्रोफेसर डॉ. कुसुम गौतम, सभी बी.एम.ओ., एकीकृत बाल विकास परियोजना अधिकारी सहित अन्य चिकित्सक व पत्रकारगण उपस्थित थे।
कार्यशाला को संबोधित करते हुए अपर कलेक्टर श्री प्रजापति ने कहा कि लिंगानुपात में गिरावट बेहद चिन्ता का विषय है। हम सभी को बेटा-बेटी में फर्क न करने की सोच रखनी चाहिये। हम एक विकसित समाज के रूप में प्रतिस्थापित तभी होंगे जब, हमारे देश का लिंगानुपात समान होगा। उन्होंने कहा कि हमारे देश में निवासरत जनजातियों में लैंगिक भेदभाव नहीं होता इसलिये उनमें लिंगानुपात देश के औसत से कही अधिक है। इसलिये जनसांख्यिकी समानता के लिये हमारे समाज को जनजातियों से सीखने की आवश्यकता है। लैंगिक भेदभाव शर्मनाक है। लिंग चयन को रोकने की जरूरत है। उन्होंने डाक्टर्स एवं मैदानी अधिकारियों से कहा कि वे जिले में लिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम का कडाई से पालन करायें।
सीएमएचओ. डॉ. ठाकुर ने इस मौके पर कहा कि विज्ञान को वरदान के रूप में ही लिया जाना चाहिये। आज विज्ञान का ऐन-केन-प्रकारेण दुरूपयोग बढता जा रहा है। लिंग चयन भी इसी दुरूपयोग का एक प्रत्यक्ष उदाहरण है। सरकार ने लिंग चयन पर निगरानी रखने के लिये 1994 में प्रसव पूर्व एवं प्रसव पश्चात गर्भ निदान तकनीक अधिनियम पारित किया। इस अधिनियम में वर्ष 2004 में कुछ संशोधन भी किये गये। अधिनियम के क्रियान्वयन के लिये जिलों में जिला सलाहकार समिति गठित की गई है। यह समिति कलेक्टर एवं पदेन जिला समुचित प्राधिकारी (पी.सी. एंड पी.एन.डी.टी.एक्ट) के नेतृत्व में जिले में लिंग चयन पर रोक लगाने के अलावा लिंगानुपात की बेहतरी के लिये कार्य करती है। इस संशोधित अधिनियम के मुख्य प्रावधानों की जानकारी समाज, जनप्रतिनिधियों, प्रशासनिक अधिकारियों और मीडिया कर्मियों तक पहुंचे, इसीलिये यह प्रचार-प्रसार कार्यशाला आयोजित की गई है। उन्होंने बताया कि सिवनी जिले में जन्म के समय लिंगानुपात चिंतनीय है इसे बढाना होगा। उन्होंने बताया कि भ्रूण लिंग परीक्षण की सूचना देने पर अगर सूचना सही पाई गई, तो सूचनाकर्ता को राज्य सरकार द्वारा घोषित एक लाख रूपये का पुरस्कार दिया जायेगा।
कन्या महाविद्यालय सिवनी की प्रोफेसर डॉ. कुसुम गौतम ने कार्यशाला में कहा कि नारी समाज की रचनाकर्ता है। आज जन्म लेने वाली कन्या कल नारी बनेगी। अगर इसे बचाने के लिये आज प्रयास नहीं किये गये तो समाज की नींव कमजोर होगी। कन्याओं को बचाने की जरूरत है। उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर हमारे समाज में क्यूं गर्भ में मारी जाती है बेटियां और क्यूं पराया धन मानी जाती है बेटियां।
उन्होंने लैंगिक भेदभाव न करने के लिये मेघालय की गारो एवं खासी जनजातियों में पितृ सत्तामक के बजाय मातृ सत्तामक सामाजिक व्यवस्था की सराहना करते हुए कहा कि समाज को बचाने के लिये हमें जनजातियों से सीखना होगा।
जिला कार्यक्रम अधिकारी श्रीमती शशि उइके ने इस मौके पर कहा कि समाज अब बदल रहा है। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा चलाई जा रही लाडली लक्ष्मी योजना का लाभ लेने के लिये अभिभावकों की उमडती भीड इस बात का प्रतीक है कि समाज में कन्या भ्रूण हत्या न करने की प्रवृत्ति बढ रही है। लोग अब एक या दोनों संताने कन्यायें होने पर भी नसबंदी करवा रहे है। समाज की यह बदलती सोच प्रशंसनीय है। सरकार ने सिर्फ बेटी वाले पालकों का सम्मान और उन्हें पेंशन देकर यह संदेश देने का बीडा उठाया है कि बेटियों का जन्म अब मंगलकारी हैं। कार्यशाला को अन्य वक्ताओं ने भी संबोधित किया।