भोपाल। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया ने कहा है कि भाजपा शासन काल के पिछले नौ वर्षों में जल संसाधन, लोक निर्माण, जल संसाधन और नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण द्वारा कराये गए विभिन्न निर्माण कार्यों में अरबों के महाघोटाले हुए हैं।
इन महाघोटालों में शासकीय अधिकारियों के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी के नेता और रसूखदार कार्यकर्ता भी संलिप्त हैं, इस कारण उनको बचाने की हर संभव कोशिशें राज्य सरकार द्वारा की जा रही हैं। जल संसाधन विभाग की सिंध परियोजना (द्वितीय चरण) में लगभग 350 करोड़ का घोटाला राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो भोपाल ने पकड़ा है और उसमें कुल 147 व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर नवम्बर 2009 में दर्ज हुई थी, किंतु तीन साल का लंबा समय बीत जाने के बाद भी केवल 29 आरोपियों के खिलाफ ही अब तक विशेष न्यायालय (भ्रष्टाचार निवारण), ग्वालियर में चालान पेश किये गए हैं अर्थात 20 प्रतिशत आरोपियों के ही चालान पेश हुए हैं।
भूरिया कहा है कि भाजपा सरकार नहीं चाहती कि जल संसाधन विभाग के इस घोटाले के शेष 118 आरोपियों के खिलाफ भी न्यायालय में चालान प्रस्तुत हों, क्योंकि जिन सामग्रियों और उपकरणों आदि की अनियमित खरीदी के आरोप इन आरोपियों पर लगाये गए हैं, उनसे मिलती-जुलती करोड़ों की अनियमित खरीदियां अन्य निर्माण विभागों में भी हुई हैं। सरकार को डर है कि कहीं जल संसाधन विभाग का घोटाला सार्वजनिक होने पर अन्य विभागों के महाघोटालों के जिन्न भी बोतल से बाहर न आ जाएं।
श्री भूरिया ने जल संसाधन विभाग के इस घोटाले का जिक्र करते हुए आज जारी अपने बयान में कहा है कि राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो, भोपाल में दिनांक 3 नवम्बर 2009 को दर्ज एफआईआर के अनुसार जल संसाधन विभाग के अंतर्गत ग्वालियर, शिवपुरी, दतिया और भिण्ड जिलों में सिंध परियोजना (द्वितीय चरण) में आरबीसी एवं हरसी हाई लेविल नहर का निर्माण स्वीकृत किया गया है।
प्रशासकीय स्वीकृति के तहत स्टील एक्वाडवट (पाइप), साइन बोर्ड, हाई मास्ट लाइट, आयरन फुट ब्रिज, सर्वेक्षण के लिए इलेक्ट्रानिक उपकरण आदि की खरीदी के लिये प्रावधान स्वीकृत न होने के बावजूद जल संसाधन विभाग के संबंधित अधिकारियों ने षड्यंत्रपूर्वक इन सामग्रियों की भारी मात्रा में करोड़ों की अवैध खरीदी की। इस अनियमित खरीदी से शासन को लगभग 350 करोड़ की आर्थिक हानि हुई। आरोप है कि ये सामग्रियां ऐसी एजेंसियों से खरीदी गई हैं, जो न तो उनका निर्माण करती हैं और न ही उनके निर्माण का उनके पास कोई अनुभव है। सामग्री स्वीकार करते समय न तो परीक्षण प्रमाण पत्र लिया गया और न ही उसकी पूरी नापजोख की गई।
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा है कि आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो की ग्वालियर इकाई ने जिन 147 अधिकारियों और कर्मचारियों को इस घोटाले में संलिप्त पाया है, उनसे जल संसाधन विभाग आवश्यक अभ्यावेदन प्राप्त कर उनकी जांच भी कर चुका है। अब केवल विशेष न्यायालय (भ्रष्टाचार निवारण), ग्वालियर में उनके खिलाफ जल संसाधन विभाग द्वारा चालान पेश होना शेष है। आपने कहा है कि आश्चर्य की बात है कि अब तक 147 में से मात्र 29 के खिलाफ ही चालान पेश हुए हैं। इनमें सेवानिवृत्त अधिकारी भी शामिल हैं। 14 आरोपी अनुविभागीय अधिकारियों और कार्यपालन यंत्रियों के चालान के प्रकरण अनुमति के लिए जल संसाधन विभाग के पास पिछले दो माह से लंबित हैं।
भूरिया कहा है कि प्रकरण में शेष 118 अधिकारियों और कर्मचारियों के चालान पेश करने की कार्यवाही में तीन वर्ष से अधिक का समय व्यतीत हो चुका है। आपने मांग की है कि जनहित में शेष चालान भी विशेष न्यायालय में अविलंब प्रस्तुत किये जाएं, जिससे कि प्रकरण में न्यायालयीन कार्यवाही आगे बढ़ सके। यदि महाघोटालों से आशंकित राज्य सरकार ऐसी कार्यवाही नहीं करने का मन बना चुकी हो तो जिन 29 के चालान पेश किये जा चुके हैं, उनको वह विशेष न्यायालय से वापस ले।