दशामाता पूजन: खराब दशाओं के प्रकोप से बचने की विधि एवं कथा | DSHAMATA POOJA VIDHI N STORY

शैलेन्द्र गुप्ता। माँ की असीम शक्ति और भक्ति की आराधना का पर्व "दशामाता पूजन" चैत्र कृष्णा दशमी सोमवार दिनांक 12 मार्च 2018 को किया जाएगा क्योंकि वैष्णव परम्परा के अनुसार सूर्योदय से तिथि को मानते है। पंचांग और जानकारों के अनुसार पूजन का समय ब्रह्मवेला में सुबह 5 से 8:23 बजे तक एवं 9:51 से 11:19 तक श्रेष्ठ है। इस दिन दशमी तिथि सुबह 11:19 बजे तक ही है। ज्योतिष बताते है कि इस दिन धन का चंद्रमा है। इसलिए यह पर्व सुख संपदा देने वाला है। अधिकतर ज्योतिषचार्यों का मानना है कि इस बार सोमवार को दशामाता का पूजन होना उत्तम रहेगा क्योंकि सौम्य वार होने के साथ शीतलता का प्रतीक है। अखंड सुहाग के लिए महिलाएं यह व्रत करके माता की आराधना करतीं है। 

शहर में दुकानों पर इस पूजा के लिए पूजन सामग्री चूडिय़ा, श्रृंगार सामग्री, मेंहदी, कंकू, लच्छा, सुपारियां, माताजी के वेश आदि की खरीदारी की होने लगी थी। इस पूजा की तैयारियों व पूजा सामग्री में रोल, मौली, सुपारी, चावल, दीपक, नैवेद्य, धुप, अगरबत्ती, श्वेत धागा , हल्दी, मेहंदी, सिंदूर आदि जरुरी है। श्वेत धागे में गाँठे लगा कर हल्दी में भिगो दे फिर पूजा के बाद इसे पहनना शुभ माना जाता है।

माँ की महिमा का गुणगान करते हुए उनके सेवक बताते है कि माँ तो बस प्रेम की भूखी हैं। अतः पाखण्ड न करके केवल प्रेम से, सच्चे हृदय से माँ का सुमिरन करो। माँ आपके सब दुख दूर कर आपको मोक्ष प्रदान करेंगी। यदि आपको को लगता है की आपके घर की, आपके परिवार की दशा लगातार बिगड़ती जा रही है, यदि दुर्भाग्य आपका पीछा नहीं छोड़ रहा है तो दशमी तिथि को किये जाने वाला दशा माता का व्रत आपके सभी दुखों को दूर करने मे सक्षम है। आपके दुर्भाग्य को सौभाग्य मे बदल सकता है।

दशमाता की पूजा विधि
स्त्रियाँ स्नानादि से निवर्त हो पूजन सामग्री ले कर दशामाता का पूजन करती हैं। एक पाटे [ चोकी ] पर पिली मिट्टी से एक दस  कंगूरे वाला गोला बनाते हैं। फिर उन दस कगुरों पर रोली ,काजल , मेहँदी से टिकी [ बिन्दी ] लगा कर , उन पर दस गेहूं के आँखे रख कर , सुपारी के मोली लपेट कर गणेशजी बना कर रोली , मोली , मेहँदी , चावल से गणेश जी का पूजन कर दशामाता की कहानी सुनते हैं ऐसा प्रतिदिन दस दिन तक करते हैं। जों सूत की कुकडी हल्दी की गांठ होलिका दहन में दिखाते हैं उसी कुकडी को दस दिन कहानी सुनाकर पूजन कर दस तार का डोरा बनाकर उस पर दस गांठ लगाकर कहानी सुनने के बाद गले में पहन लेते हैं , अगली दशामाता व्रत तक पहने रहते हैं ,फिर नया डोरा बनाकर पूजन कर दूसरा सूत का डोरा पहनते हैं। इस दिन व्रत रखा जाता हैं एक ही समय भोजन करते हैं।

दशामाता की कहानी हिंदी मे:-
चैत्र के महीने में कृष्ण पक्ष की अँधेरी रात में ब्राह्मण नगरी में डोरे दे रहा था। रानी महल के झरोखे में बैठी थी। रानी ने दासी से कहा ब्राह्मण को बुलाकर पूछो की वह नगरी में काहे का डोरा दे रहा हैं। दासी ने पूछा तो ब्राह्मण बोला दशामाता का डोरा नगरी में दे रहा हूँ।

रानी ने भी ब्राह्मण से डोरा ले लिया और अपने गले में बांध लिया। राजाजी नगर भ्रमण से आये रानी के गले में कच्चे सूत का डोरा पहने देखा पूछा ये काहे का डोरा पहना हैं ? अपने तो सब ठाठ हैं। राजा ने रानी से डोरा उतरवा कर जला दिया। रानी जले हुए डोरे को पानी में घोल कर पी गई।

उसी दिन से राजा के घर में खण्डन – बंडन हो गया। राजा ने कहा की अब देश छोड़ कर कही चलो। इस नगरी में कोई काम करेंगे तो अच्छा नहीं लगेगा। राजा और रानी देश छोड़ कर चले गये। राजा वहाँ से अपने मित्र के गाँव पहुंचा। वहाँ पर राजा को एक कमरा सोने के लिए दिया उस पर एक खूंटी पर नौ करोड़ का हार लटका था। उसे मोरडी निगल गई।

प्रात: राजा उठा और अपने मित्र से बोला कि मैं यहाँ नहीं रहूँगा। क्योकि मोरडी हार निगल गई और हम बदनाम हो जायेंगे और वह वहाँ से चले गये। मित्र की ओरत बोली की ऐसा मित्र आया जों मेरा हार चुराकर ले गया। फिर मित्र ने अपनी औरत से कहा की ऐसी कोई बात नहीं हैं। उसकी दशा [ स्थिति ] खराब हैं। आगे गया तो रास्ते में बहन का गाँव आया। वह विश्राम करने के लिये उस गाँव की सरोवर की पाल पर बैठ गया। दासी ने देखा और रानी को जाकर बोली की आपके भैया भाभी सरोवर की पाल पर बैठे हैं। बहन ने पूछा की कैसे हाल में हैं। दासी ने कहा हाल अच्छे नहीं हैं। बहन बोली की उन्हें बोलना की वह वहीं रुके में वही आ रही हूँ।

रानी दासी के साथ वही भोजन ले गई भाई ने भोजन किया लेकिन भाभी ने खड्डा खोदकर वही गाड़ दिया। आगे एक गाँव आया वहाँ दोनों एक बगीचे में जाकर बैठे और बगीचा सुख़ गया। माली ने दोनों को निकाल दिया बोला कैसे लोग आये बगीचा सुख़ गया।

आगे गये एक नगरी में विवाह हो रहा था। कुम्हार – कुम्हारिन चंवरी ले कर रहे थे, राजा व रानी बोले हम भी चले। इतना कहते ही उनके हाथ से चंवरी गिरकर छूट गयी। आगे आये तो रानी के पीहर का गाँव आया, वे कुए के पास जाकर बैठ गई। वहाँ पर रानी के पीहर की दासी पानी भरने आयी। रानी ने उससे कहा की तेरे राजा से पूछ कर आ की हमें काम पर रखेंगे क्या ? लेकिन मेरी एक शर्त हैं कि मैं झूटे बर्तन नहीं माजूंगी, बच्चो की पोटी साफ नही करूंगी, और सब काम कर दूँगी। ऐसा ही दासी ने जाकर राजा से बोल दिया की दो व्यक्ति सरोवर की पाल पर बैठे हैं नौकरी मांग रहे हैं, और उनकी शर्त भी बताई।

रानी ने बोला उन्हें बुला ले। दो काम नहीं करेंगे तो कोई बात नहीं। वह दोनों पति, पत्नी आ गये। पति को घोड़े की देखरेख का काम दे दिया और पत्नी को रसोई घर के काम में रख दिया। रानी ने नाम पूछा वह बोली दमड़ी हैं। दमड़ी [ रानी ] वहाँ रहने लगी और मन लगा कर काम करने लगी। चैत्र का महिना आया, होली बाद के दिन आये दमड़ी ने रानी से कहा आप मुझे कुछ सामान दे दो मुझे जंगल में जाकर दशामाता की पूजा करनी हैं। रानी ने सूत की कुकडी हल्दी की गांठ रोलिं, मोली, मेहँदी, काजल सब सामान लेकर दशामाता की मन से पूजा की , दशमाता का डोरा लिया व्रत कर एक समय भोजन कर आये। सब शाही ठाठ वापिस आ गये। दमड़ी ने सिर धोया तो उसके सिर में पदम् था। उसकी माँ की आँख से आंसू गिर गया तो दमड़ी बोली यहं क्या हुआ। रानी बोली ऐसा ही पदम् मेरी लडकी के सिर में भी हैं। अब क्या पता वह कहाँ हैं। उसकी याद में मेरे आंसू आ गये। इतने में दमड़ी बोली माँ में तेरी बेटी हूँ और घौड़े की रखवाली करने वाला तेरा जँवाई हैं।

माँ बोली तूने यह रूप क्यों छिपाया। मेरे हीरे जैसे जँवाई को घौड़े की रखवाली में रखा। उसने जँवाई का मान सम्मान किया नये वस्त्र पहनाये। लडकी बोली माँ बहुत दिन हो गये अब हम हमारे घर जायेंगे। लडकी को बहुत सी धन–सम्पदा देकर विदा किया।

आगे गये कुम्हार का घर आया। वहाँ कुम्हार चंवरी लेकर जा रहा था। राजा रानी गये वैसे ही टूटा हुआ कलश वापस जुड़ गया। तब कुम्हार बोला थौडे दिन पहले एक राजा रानी आये थे चंवरी टूट गई। तब राजा बोला पहले भी हम ही थे तब हमारी दशा खराब थी। आगे गये जों बगीचा सूख़ गया था वो हरा भरा हो गया, तो माली बोला पहले एक दुष्ट राजा रानी का पाँव पड़ते ही बाग सुख़ गया तो राजा बोला पहले भी हम आये थे पर तब हमारी दशा खराब थी। अब हमारी दशा अच्छी हो गई। जिससे तुम्हारा बाग हरा भरा हो गया। आगे चला तो मित्र का गाँव आया राजा बोले हम उसी कमरे में ठहरेंगे जहाँ पहले ठहरे थे। उसी कमरे में ठहरे और आधी रात को मोरडी ने हार उगलने लगी तो रानी ने कहा अपने मित्र को बुलाकर लाओ। मित्र ने देखा और अपनी पत्नी की तरफ से माफी मांगी और कहा औरत की बात पर मत जावों। आगे जाकर देखा तो बहन का गाँव आया। दासी पानी भरने आई और देखा और रानी को जाकर कहा आपके भैया भाभी आये हैं, उनकी हालत भी अच्छी हैं। तब बहन वहाँ गयी और बोली भाभी घर चलो , तो भाभी बोली नहीं बाई जी हम तो आपके घर नही चलेंगे आपको शर्म आएगी।

भाभी ने खड्डा खोदा तो वहा सोने के चक्र निकले बहन ने भाई की आरती उतारी भाई ने सोने के चक्र बहन को दे दिए और अपने नगर में आये ती वहा की प्रजा अत्यंत प्रसन्न हो गई और सारे गाँव ने राजा रानी का स्वागत किया और हवेली में पहले जैसे ठाठ हो गये। इसलिये कहते हैं की दशा किसी से पूछकर नहीं आती। 
हे दशामाता जैसी राजा की अच्छी दशा आयी वैसे ही सब पर अपनी कृपा रखना।
|| जय बोलो दशामाता की जय ||
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