जिन पॉलिसीधारकों ने पहले यूनिट-लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान (यूलिप) खरीदे थे और बाद में पॉलिसियां रोक दी थीं, उनके लिए अच्छी खबर है। हाल में ही बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीए) ने बीमा कंपनियों को एक परिपत्र जारी कर ताकीद किया है कि रुकी हुई यूनिट-लिंक्ड योजनाओं के कोष मूल्य (फंड वैल्यू) की निकासी में किसी तरह की देरी नहीं की जाए। यह आदेश उन मामलों में भी लागू होता है, जिनमें ग्राहकों ने लॉक-इन अवधि पूरी होने से पहले ही पूरी राशि निकाल लेने का फैसला किया है।
इससे पहले 26 अगस्त, 2016 को बीमा नियामक की तरफ से जारी परिपत्र में कहा गया था कि पॉलिसीधारक अपनी पॉलिसी को रोकने के बाद दो साल के भीतर एक बार फिर चालू कर सकता है। यदि इस बीच में पॉलिसी की लॉक-इन अवधि पूरी हो जाती है तो भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा और उसे दोबारा शुरू किया जा सकेगा। इससे संबंधित नियम के अनुसार ग्राहक यदि लॉक-इन अवधि पूरी होने से पहले ही निकासी का विकल्प चुनते हैं तो उन्हें पूरी फंड वैल्यू मिलनी चाहिए। यदि पॉलिसी उपरोक्त अवधि में दोबारा शुरू नहीं की गई है तो भी फंड वैल्यू लौटाई जानी चाहिए।
इस परिपत्र के उद्देश्य पर इंडिया फर्स्ट लाइफ इंश्योरेंस की प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी आर एम विशाखा कहती हैं, 'यह परिपत्र यूलिप पॉलिसियां दोबारा शुरू करने के मुद्दे पर स्पष्टीकरण देने के लिए जारी किया गया था। आईआरडीए ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर पॉलिसीधारक अपनी पसंद से पॉलिसी दोबारा शुरू करने का विकल्प चुनता है तो दो साल के भीतर ऐसा कर सकता है, लॉक-इन अवधि का उस पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। यदि ग्राहक कोई जवाब नहीं देता है और लॉक-इन अवधि में ही पूरी रकम वापस लेना चाहता है तो बीमा कंपनी को भुगतान करना होगा और समय से पहले पॉलिसी बंद करनी होगी। इससे ग्राहकों को बेहतर सुरक्षा मिलेगी।'
अगर हिसाब लगाएं कि ग्राहक कितने समय बाद पॉलिसी बंद करता है तो 2015-16 के आंकड़े बताते हैं कि 61 फीसदी पॉलिसियों का ही नवीकरण 13वें महीने के बाद होता है। 61वें महीने तक एक-तिहाई पॉलिसी ही चालू रहती हैं। इस तरह कह सकते हैं कि दो-तिहाई पॉलिसीधारक पांच साल के भीतर ही पॉलिसी बंद कर लेते हैं। 2015-16 में निजी कंपनियों की पॉलिसियों का नवीकरण 2014-15 के मुकाबले 6.25 फीसदी तक बढ़ गया, लेकिन भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) के मामले में आंकड़ा 23.26 फीसदी गिर गया। 2015-16 में बीमा क्षेत्र में पॉलिसियों (यूलिप या लिंक्ड प्रीमियम) के नवीकरण में कुल 3.5 प्रतिशत तेजी आई और निजी कंपनियों के पॉलिसीधारक उनसे अधिक जुड़े रहे।
पॉलिसीएक्स डॉट कॉम के सीईओ एवं संस्थापक नवल गोयल कहते हैं, 'जब लोगों को लगता है कि किसी पॉलिसी में उन्हें अच्छा प्रतिफल नहीं मिल रहा है या फिर उनकी जरूरत बदलती है तो वे इसे बंद कराते हैं। कभी-कभी प्रीमियम भी कारण होता है। जब पॉलिसीधारक को लगता है कि दूसरी कंपनी से सस्ती दर पर समान पॉलिसी मिल रही है तो वह मौजूदा पॉलिसी बंद कर दूसरी पॉलिसी चुनते हैं। अगर बहकाकर किसी ऐसे ग्राहक को पॉलिसी बेच दी जाती है, जिसकी जरूरतें उस पॉलिसी से पूरी नहीं हो रही हों तो वह उसे बंद कर सकता है।' ग्राहकों को रकम लौटाने पर आईआरडीए का आया परिपत्र बीमा कंपनियों को सतर्क करने वाला है। बीमा नियामक ने एक लोकपाल की भी व्यवस्था की है। अगर ग्राहकों को समय पर रकम नहीं मिलती है तो वे पहले कंपनियों से संपर्क कर सकते हैं। कंपनियां कुछ नहीं करती हैं वे लोकपाल के पास शिकायत दर्ज करा सकते हैं।