नक्सली इलाके में बारुद का अवैध भंडार: यह लापरवाही नहीं देशद्रोह है

आनंद ताम्रकार/बालाघाट। गत 7 जून को खैरी गांव में पटाखा फैक्टी के बारूदी धमाके में 25 जानें स्वाहा हो गईं। बताया जा रहा है कि जहां यह हादसा हुआ वहां 100 क्विंटल बारूद का अवैध भंडार था। सवाल यह है कि 100 किलो के लाइसेंस पर 100 क्विंटल का भंडार कैसे जमा हो गया। क्या जिम्मेदार अधिकारी लाइसेंस जारी करने के बाद जांच पड़ताल नहीं करते। यह किसी दूसरे इलाके में होता तो प्रशासनिक लापरवाही कहा जा सकता था परंतु नक्सली इलाके में इस तरह का बारूद भंडार लापरवाही नहीं देशद्रोह है। इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ नोटिस या निलंबन पर्याप्त नहीं है। ऐसे देशद्रोही अधिकारियों के खिलाफ विशेष कार्रवाई होनी चाहिए। 

विगत 2 वर्ष पूर्व ही किरनापुर ग्राम में इसी तरह चलाई जा रही अवैध पटाखा फैक्टी में 3 मौतें हो चुकीं हैं लेकिन जिला प्रशासन की ओर से जिले में चल रही अवैध पटाखा फैक्टीयों एवं बारूद के इस्तेमाल किये जाने पर ना तो कोई ठोस कार्रवाई की गई और ना ही इसके दुरूपयोग किये जाने किये जाने से रोक लगाने के लिये कोई रीति नीति बनाई गई। इन विसंगतियों के कारण ही जिले में ऐसा दर्दनाक हादसा पून खैरी में घटित हो गया।

किरनापुर की घटना से सबक लेकर यदि पूरे जिले में छानबीन की गई होती तो खैरी में जुलाई 2014 से चलाई जा रही इस अवैध फैक्टी का भी पता चल जाता और उसमें व्याप्त खामियां भी दिखाई देती जिन्हें समय रहते दूर किया जा सकता था लेकिन जिला प्रशासन ने इस विषय को संजिदगी से नही लिया जिसके कारण कई परिवार उजड गये।

बालाघाट जिला नक्सली गतिविधियों के चलते संवेदनशील माना गया है नक्सलवादियों द्वारा बारूदी सुरंग लगाकर पुलिस कर्मियों की जाने ली जा चुकीं है। बालाघाट जिला जिसकी सीमायें महाराष्ट, छत्तीसगढ से लगी हुई है जहां नक्सली हिसंक वारदातों को निरतंर अजाम देते आ रहे है जिले की सीमा पर वाहनों की आवाजाही पर कोई निगरानी नही रखी जा रही है सीमाओं पर लगे नाकों तथा अन्य रास्तों से बेरोकटोक वाहनों की आवाजाही जारी है। इन विसंगतियों के चलते ही बारूद और अन्य विस्फोटक सामग्री का जिले में आना पूरे तंत्र पर सवाल उठाता है। 

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