इलाहाबाद। सरकारी नौकरियों में आरक्षण प्रक्रिया मनमाने तरीके से लागू कर सामान्य वर्ग की सीटें भी आरक्षित कोटे के अभ्यर्थियों से भरने की प्रवृत्ति पर हाईकोर्ट ने सख्त नाराजगी जताई है। कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि लोक पद पर बैठे अधिकारियों द्वारा ऐसा किया जाना शर्मनाक है। वाराणसी में लेखपाल भर्ती में क्षैतिज आरक्षण गलत तरीके से लागू करने पर कोर्ट ने जिलाधिकारी वाराणसी से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है। माना जा रहा है कि इस मामले का निराकरण केवल एक प्रकरण को ठीक कर देने के साथ नहीं होगा बल्कि व्यवस्था को सुधारने के लिए कोर्ट कड़ा फैसला ले सकता है। कुछ अधिकारियों को जेल भी जाना पड़ सकता है।
दयाशंकर सिंह की याचिका पर सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति वीके शुक्ल और न्यायमूर्ति संगीता चंद्रा की पीठ ने कहा कि अब यह मामला ऐसा होता जा रहा है कि इसमें कुछ लोगों को जेल जाना पड़ सकता है। याची के अधिवक्ता सीमांत सिंह ने बताया कि याची ने लेखपाल भर्ती में शारीरिक रूप से अक्षम कैटेगरी में आवेदन किया था।
19 सितंबर, 2015 को जारी परिणाम में उसका चयन हो गया। इसके बाद जिला स्तरीय चयन समिति ने परिणाम संशोधित करते हुए क्षैतिज आरक्षण की सभी पांच सीटों पर पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति अभ्यर्थियों का चयन कर लिया। याची सामान्य वर्ग का है, इसका नाम चयन सूची से बाहर कर दिया गया, जबकि 1993 की आरक्षण नियमावली की धारा 3(11) के तहत क्षैतिज आरक्षण में नियम है कि जिस वर्ग का अभ्यर्थी हो उसी वर्ग में उसे आरक्षण दिया जाएगा।
स्थायी अधिवक्ता रामानंद पाण्डेय ने कहा कि इस त्रुटि को पुनर्विचार कर ठीक कर लिया जाएगा, लेकिन अदालत का कहना था कि ऐसा बार-बार हो रहा है। इसके लिए जिम्मेदार व्यक्ति कौन है इसकी जानकारी होनी चाहिए। मामले की अब 22 फरवरी को सुनवाई होगी। लोक पद पर बैठे अधिकारियों द्वारा ऐसा किया जाना शर्मनाक है। यह मामला ऐसा होता जा रहा है कि इसमें कुछ लोगों को जेल जाना पड़ सकता है।