मोरध्वज किला: कई गूढ रहस्यों को समेटे है

Himanshu Badoni.देवभूमि उत्तराखंड केवल शिव भक्तों एवं वैष्णवों का ही धार्मिक स्थल नहीं रहा है, बल्कि यहां बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने भी बौद्ध धर्म को खूब पल्लवित और पुष्पित किया है. पांचवी शताब्दी तक बौद्ध धर्म यहां के भाबर क्षेत्र में भी खूब प्रचारित किया गया जिसके निशान यहां आज भी देखने को मिलते है.

बौद्ध धर्म के एक ऐसे ही मठ से आज हम आपको रुबरु करवा रहे जो पहले हिन्दुओं की आस्था का केन्द्र रहा लेकिन बाद में इस पर बौद्ध धर्म के अनुनायियों ने अपना अधिपत्य स्थापित किया. जिसके अवशेष आज भी कई ऐतिहासिक गूढ रहस्यों को अपने में समेटे है.

कोटद्वार से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर बिजनौर जनपद की नजीबाबाद तहसील में पडने वाला पौराणिक मोरध्वज किला आज भी अपने आप में कहीं हिन्दू और बौद्ध धर्म के ऐतिहासिक गूढ रहस्यों को अपने में दफन किये हुऐ है.

दरअसल प्राचीन काल में शिव भक्त मोरध्वज नाम के एक हिन्दू राजा ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिऐ इस किले का निर्माण करवाया था. जिसके अवशेष इस किले की खुदाई के दौरान मिले देवी देवताओं की मूर्ति के रुप में प्रमाणिक करते है. अभी कुछ साल पहले ही इसी गांव के पास एक विशाल काय शिवलिंग के रुप में निकली एक आकृति ने इस बात की प्रामणिकता पर और बल दिया कि यह किला पौराणिक काल में शिव भक्तों की आराधना का प्रमुख केन्द्र था. जिसकी अब यहां के ग्रामीण मंदिर में प्राण प्रतिष्ठ की योजना बना रहे है.

इतना ही नही यह वहीं स्थान है जहां पर हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले राजा मोरध्वज के किले को चौथी ईसवी पूर्व में बौद्धों ने आघात पहुंचाकर इस स्थल को बौद्ध धर्म के प्रचार एवं प्रसार के लिऐ इसे बौद्ध मठ के रुप में विकसित किया जिसके अवशेष आज भी यहां मौजूद है.

बौद्ध मठ के रुप में इस इस क्षेत्र का प्रभाव इतना था कि इसका जिक्र खुद प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी अपनी यात्रा विर्तता के दौरान मोरालापा के रुप में की और यहीं वजह थी कि इस तथ्य की सत्यता जांचने के लिऐ पूर्व में गढवाल विश्वविद्यालय ने भी यहां खुदाई करवाई. जिसमें उन्हे भी खुदाई के दौरान बौद्ध धर्म से सम्बधित कही पुरातात्विक मूर्तियां यहां मिली है जो आज भी यहां धूल फांक रही है.

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