कब मिलेगी परिणाम और ज्ञान मूलक शिक्षा

राकेश दुबे@प्रतिदिन। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने हाल ही में फिर शिक्षा नीति में बदलाव के मापदंड तय किये हैं, इससे उलट राज्य, हर वर्ष पाठ्य पुस्तके बदल अपनी शिक्षा नीति को विराम दे देती हैं। शिक्षा में केवल पाठ्यपुस्तकें सीखना शामिल नहीं है बल्कि इसमें मूल्यों, कौशलों तथा क्षमताओं में भी वृद्धि की विधि और अपेक्षा शामिल है। 

इससे व्यक्ति को अपने करियर और साथ ही प्रगतिशील मूल्यों के साथ नए समाज के निर्माण में एक उपयोगी भूमिका निभाने में सहायता मिलती है। अत: शिक्षा व्यक्तिगत स्तर की बेहतरी के साथ-साथ पूरे समाज में बदलाव ला सकती है।

इतना ही नहीं, साक्षर होने का मतलब लोगों को शिक्षित करना मात्र नहीं है। बल्कि इसके कई फायदे हैं। बेहतर साक्षरता दर से जनसंख्या बढ़ोतरी, गरीबी और लिंगभेद जैसी समस्याओं से निपटा जा सकता है। बहरहाल, संयुक्त राष्ट्र के अध्ययन के मुताबिक दुनिया भर में करीब चार अरब लोग साक्षर हैं तो वहीं दूसरी तरफ अब भी करीब 77.5 करोड़ लोग साक्षर नहीं हैं। इनमें से दो-तिहाई महिलाएं हैं। 

लगभग तीन चौथाई निरक्षर आबादी दुनिया के सिर्फ दस देशों में रहती है। हर पांच में से एक व्यक्ति निरक्षर है। वहीं दुनिया के लगभग पैंतीस देशों में आज भी साक्षरता दर पचास प्रतिशत से कम है। अगर भारत में साक्षरता की दर की बात करें तो वर्ष २०११ में बढ़ कर ७४.४ प्रतिशत तक पहुंच गई। इसमें पुरुषों की साक्षरता दर जहां ८.१६ प्रतिशत रही, वहीं महिलाओं की साक्षरता दर ६५.४६ प्रतिशत  ही दर्ज की गई। लेकिन यह अब भी विश्व की औसत साक्षरता दर ८४ प्रतिशत से काफी कम है। यह ठीक है कि वर्तमान में स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति दर सत्तर प्रतिशत जरूर है, लेकिन स्कूल छोड़ने की दर भी चालीस प्रतिशत बनी हुई है।

भारत में कुल २८.७ करोड़ वयस्क पढ़ना-लिखना नहीं जानते हैं, जो कि दुनिया भर की निरक्षर आबादी का सैंतीस प्रतिशत है। देश में कम साक्षरता दर का एक कारण शिक्षा-प्राप्त लोगों का भी बेरोजगार होना है। हालांकि यह कोई नई बात नहीं है। क्योंकि अपने संक्रमण काल से ही भारतीय शिक्षा को कई चुनौतियों और समस्याओं का सामना करना पड़ा। आज भी ये चुनौतियां और समस्याएं हमारे सामने हैं जिनसे दो-दो हाथ करना है। 

श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com 

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