अतिथि शिक्षक से अपर कलेक्टर बन गए तो क्या, शिक्षा के लिए काम जारी है

मंदसौर। जे.सी. बोरासी भोपाल में अतिथि शिक्षक हुआ करते थे। सरकारी नौकरी के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे। पास हुए और अपर कलेक्टर बन गए लेकिन वो आज भी एक शिक्षक की तरह शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने एक खास प्रोजेक्ट तैयार किया है 'ब़ढ़ें मंजिल की ओर'। मंदसौर में प्रयोग करके देखा तो सफल रहा। अब इसे पूरे राज्य में लागू करवाने की तैयारी चल रही है। 

प्रोजेक्ट ‘बढ़ें मंजिल की ओर’ पर 3 जिलास्तरीय और एक बार ब्लाॅकस्तर कार्यशाला हो चुकी है। इसमें जिले के स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थियों व टीनएजर्स को भविष्य की दिशा बताई जा रही है। कार्यशाला में 22 अलग-अलग सेवा क्षेत्रों से जुड़े विशेषज्ञ मार्गदर्शन देते हैं। प्रोेजेक्ट जिले में सफल हो गया हैं। अब इसे शासन को भेजने की तैयारी है ताकि प्रदेशभर में अमल हो सके। 

प्रोजेक्ट में बोरासी ने नशा, अपराध, निराशाभाव से दूर रहने के साथ रोजगार क्षेत्र में असंतुलन पर भी रिपोर्ट तैयार की। उच्चस्तर सेवा, मध्यम, निम्न व निम्नतर सेवा क्षेत्र के बारे में बताया। साथ ही सेवा क्षेत्र के चयन में पैतृक प्रभाव, संगति, प्रकृति व शिक्षा के साथ ग्लोबलाइजेशन के प्रभाव का भी जिक्र किया है। नैसर्गिक गुणों में शारीरिक, मानसिक, कलात्मक और सर्वगुण संपन्न की श्रेणी भी बताई। 

इन 22 सेवा मार्ग पर केंद्रित है प्राेजेक्ट 
कृषि, उद्योग, व्यापार, प्रबंधन, बैंकिंग/सीए/बीमा, चिकित्सा, इंजीनियर, साइंस एंड टेक्नालाॅजी, शिक्षा, पर्यटन, मीडिया, स्पोर्ट्स, राजनीति, कला संस्कृति एवं मनोरंजन, सहकारिता, स्व-सहायता समूह, एनजीओ, पर्यावरण, पुलिस, रक्षा, न्यायिक सेवा व सिविल सेवा। कार्यशाला में इन क्षेत्रों के जानकार विद्यार्थियों से रूबरू होते हैं। 

ऐसे बनें शिक्षक फिर प्रशासक 
बोरासी 1992 से पहले भोपाल में ढाई साल व इंदौर के शासकीय कॉलेज में करीब डेढ़ साल असिस्टेंट प्रोफेसर रहे। वे इतिहास व भूगाेल पढ़ाते थे। इस दौरान प्रशासनिक सेवा के लिए लगातार तैयारी भी करते रहे। कॅरियर में टर्न आया और 1993 में वे छिंदवाड़ा के डिप्टी कलेक्टर बने। इसके बाद विभिन्न जिलों में सेवा देकर अपर कलेक्टर के पद पर मंदसौर आए। सेवाकाल में जहां भी गए, शिक्षा के बढ़ावे पर ध्यान दिया। मन में कसक थी कि बच्चों को रुचिकर क्षेत्र में भेजने के लिए कुछ करना है तो 2 साल की मेहनत से ‘बढ़ें मंजिल की ओर’ प्रोजेक्ट बना डाला। इसमें कक्षा 10वीं, 12वीं, स्नातक-स्नातकोत्तर की पढ़ाई करने वालों को मार्गदर्शन दिया। 

बच्चे अन्य क्वालिटी भी रखते हैं 
बोरासी ने बताया 80 फीसदी केस में पाया कि इंजीनियर का बेटा ट्रेन, किसान पुत्र बैलगाड़ी ही उठाता है। इसके अलावा बच्चे अन्य क्वालिटी भी रखते हैं। इसी स्टेज से अभिरुचि पकड़ेंगे और रजिस्टर में दर्ज कर पांचवीं मार्कशीट, आठवीं मार्कशीट में पसंदीदा 3 सेवा क्षेत्र लिखाने का भी प्रपोजल है। शासन को सुझाव भेजूंगा। विद्यार्थियों की साइकोलॉजी 8वीं, 10वीं में भी इसी तरह रहेगी। यहां 11वीं से रुचि वाला क्षेत्र देंगे तो बेहतर नतीजा आएगा। 

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