राकेश दुबे@प्रतिदिन। कहते हैं, आइटी सेक्टर के प्रतिष्ठित संस्थानों में काम करनेवाली महिलाओं की संख्या एक तिहाई को पार कर गयी है| इन आंकड़ों का लैंगिक विविधता के नजरिये से अलग महत्व तो है| किसी भी देश के आर्थिक विकास के महत्वपूर्ण संकेतकों में एक संकेत है- वहां के कार्यबल में औरतों की भागीदारी| टाटा ग्रुप की टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज (टीसीएस) में महिलाओं का आंकड़ा एक लाख को पार कर गया है और इस दृष्टि से टीसीएस भारत में प्राइवेट सेक्टर में सबसे ज्यादा महिलाओं को काम देनेवाली कंपनी बन गयी है| आइबीएम में एक लाख तीस हजार महिलाएं हैं और पुरुषों की संख्या तीन लाख है| इनफोसिस व विप्रो में महिलाओं की संख्या ५४ ५३७ और ४५ २७६ है और पुरुषों की संख्या १६१ २८४ व १४७४५२ है|
भारत में इस सेक्टर में महिला टैलेंट की कमी नहीं है, पर कंपनियों का फोकस लैंगिक विविधता की ओर होना चाहिए| महिला-पुरुष अनुपात में जो असंतुलन है, उसे नीतियों द्वारा दूर करने की दिशा में तेजी से अग्रसर होने का वक्त है| ध्यान देनेवाली बात यह भी है कि बीएसइ की चोटी की 100 कंपनियों के बोर्ड में महिलाओं की संख्या बहुत कम है| स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक, कम्युनिटी बिजनेस एंड क्रेनफील्ड स्कूल ऑफ मैनेजमेंट की ‘विमेन ऑन कॉरपोरेट बोर्डस इन इंडिया’ नामक इस रपट के अनुसार कनाडा व अमेरिका में ऐसे महत्वपूर्ण पदों पर १५ प्रतिशत महिलाएं हैं. ब्रिटेन में यह संख्या करीब १२ प्रतिशत है. हांगकांग व ऑस्ट्रेलिया भी हमसे आगे हैं|
दरअसल, दुनिया में तेज गति से उभरती अर्थव्यवस्था वाले भारत में इस मुद्दे पर खुल कर बहस होनी चाहिए| यह ध्यान में रखना होगा कि शिक्षित महिलाएं इस देश की गतिशील अर्थव्यवस्था के मुख्य ईंजनों में एक हैं| व्हाइट कॉलर की यह नयी पौध पेशेवर रूझान के साथ शिक्षण संस्थानों में दाखिला लेती है और उसी रूझान व तेवरों के साथ ही जॉब मार्केट में उतरती है| हावर्ड बिजनेस रिव्यू में छपे एक शोध के मुताबिक भारत में ८५ प्रतिशत महिलाएं महत्वाकांक्षी हैं, जबकि चीन में ६५ प्रतिशत. भारत की ७६ प्रतिशत महिलाएं खुद को नौकरी में टॉप पर देखने की आंकाक्षा रखती हैं| हैरत होती है उस फासले को देख कर, जो ऐसी आकांक्षा पालनेवाली महिलाओं व जमीनी हकीकत के बीच पसरा हुआ है|
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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rakeshdubeyrsa@gmail.com
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