POLICE ने bastard शब्द को जातिवादी मानकर SC ST Act लगा दिया, सुप्रीम कोर्ट ने कहा गलत बात

पूरे भारत में पुलिस द्वारा मनमाने तरीके से Scheduled Caste and Scheduled Tribe (Prevention of Atrocities) Act, 1989 लगाए जाने के खिलाफ माहौल बना हुआ है। एक और मामला सामने आया है। पुलिस ने एक 55 वर्ष की है व्यक्ति के खिलाफ केवल इसलिए एससी एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज कर लिया क्योंकि उसने पीड़ित व्यक्ति को अंग्रेजी में bastard कहा था। 

bastard शब्द किसी जाति-आधारित गाली के दायरे में नहीं आता: सुप्रीम कोर्ट

जस्टिस अराविंद कुमार और एनवी अंजरिया की बेंच ने टिप्पणी की कि पुलिस का "bastard" शब्द को जातिगत अपमान मानकर एससी/एसटी एक्ट लागू करना "rather surprising" है। बेंच ने कहा, यह शब्द किसी जाति-आधारित गाली के दायरे में नहीं आता। उन्होंने यह भी नोट किया कि इसी एक्ट के कारण केरल हाईकोर्ट ने शुरुआत में अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया था।

शिकायतकर्ता ने जातिगत अपमान की शिकायत ही नहीं की थी

अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा, "यह काफी आश्चर्यजनक है कि शिकायतकर्ता की शिकायत में किसी जातिगत अपमान का कोई आरोप न होने के बावजूद, स्थानीय पुलिस ने एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) एक्ट, 1989 की धाराओं को जोड़ दिया, जिसने हाईकोर्ट के मन में पूर्वाग्रह पैदा कर दिया और जमानत अस्वीकार हो गई।"

मामला कुल्हाड़ी से हमले का था

मामला 16 अप्रैल का है, जब आरोपी ने कथित तौर पर शिकायतकर्ता को सड़क पर रोका, धमकी दी और कुल्हाड़ी से हमला किया। FIR के अनुसार, आरोपी ने चोट पहुंचाने से पहले शिकायतकर्ता को "bastard" कहा। शिकायतकर्ता ने खुद को बचाते हुए हाथों पर खरोंचें और खून बहने वाली चोटें झेलीं, जो साधारण प्रकृति की थीं।

सेक्शन 18 के कारण हाई कोर्ट चाहकर भी जमानत नहीं दे पाई

FIR दर्ज होने के बाद पुलिस ने एससी/एसटी एक्ट की धाराएं जोड़ीं, दावा करते हुए कि "bastard" शब्द जातिगत अपमान है। आरोपी, जिसका कोई पूर्व आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था, ने केरल हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत मांगी। उन्होंने तर्क दिया कि एक्ट की धाराएं शिकायत से मेल नहीं खातीं। लेकिन हाईकोर्ट ने सेक्शन 18 के तहत रोक का हवाला देकर जमानत नामंजूर कर दी। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

मूल FIR में जातिगत अपमान का कोई जिक्र नहीं था

सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता ने वकालत की, कि मूल FIR में जातिगत अपमान का कोई जिक्र नहीं था और कथित तिरस्कार व्यक्तिगत था, न कि जाति-संबंधी। उन्होंने घाव प्रमाण-पत्र का हवाला दिया, जिसमें दर्ज था कि घटना के समय शिकायतकर्ता शराब के नशे में था और चोटें साधारण थीं। साथ ही, आरोपी को हृदय रोग है और उन्होंने जांच में पूर्ण सहयोग किया है।

SCST Act मामले में अग्रिम जमानत: सिधान उर्फ सिधरथन बनाम केरल राज्य 

बेंच ने इन तर्कों में दम पाया और कहा कि पुलिस ने शिकायत से आगे बढ़कर एक्ट की धाराएं जोड़ीं। उन्होंने नोट किया, "घायल व्यक्ति की पहली शिकायत में तो जातिगत अपमान का जरा भी संकेत नहीं था।" इस आधार पर अदालत ने याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत दी और हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया।

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व एडवोकेट्स श्रीराम परक्कट, आनंदु एस नायर, मनीषा सुनील कुमार, बाजिंदर सिंह, श्रीनाथ एस और पार्थसारथी ने किया। प्रतिवादी पक्ष के लिए एडवोकेट्स निशे राजेन शोंकर, अनु के जॉय, अलीम अनवर, संतोष के, देविका एएल और बिजू पी रमनान ने पैरवी की।

यह फैसला न केवल न्यायिक संतुलन को रेखांकित करता है, बल्कि कानूनी प्रक्रियाओं में सावधानी और निष्पक्षता की याद दिलाता है, ताकि निर्दोष व्यक्ति अनावश्यक रूप से फंस न जाएं। 
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