Climate Analytics: पृथ्वी को इंद्र के आतंक से बचाने का आखिरी मौका

जब अचानक समुद्र में तूफानों की संख्या बढ़ जाए, कहीं पर घनघोर बारिश हो और कहीं पर भयंकर सूखा पड़ने लगे, तो प्रकृति की ऐसी स्थिति को भारतीय प्राचीन कथाओं में इंद्र का आतंक कहा गया है। पिछले सालों में दुनिया भर की सरकारों ने विकास के नाम पर जो हालात बना दिए हैं, इंद्र का कहर पक्का है
लेकिन क्लाइमेट एनालिटिक्स की नई रिपोर्ट “Rescuing 1.5°C” के अनुसार उम्मीद की आखिरी किरण बाकी है, लेकिन इसके लिए आपको भी भूमिका निभानी होगी। अपने विचारों के साथ इस रिपोर्ट को सोशल मीडिया पर शेयर कीजिए, ताकि सरकार सूचित हो और विकास की दिशा सही हो जाए।

EV और सोलर पैनल्स पर भारी भरकम सब्सिडी देनी होगी

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर देश तुरंत और बड़े पैमाने पर कदम उठाएँ, जैसे तेज़ी से रिन्यूएबल एनर्जी को बढ़ाना, अर्थव्यवस्था को बिजली-आधारित बनाना और जीवाश्म ईंधनों से बाहर निकलना, तो 2050 से पहले ही तापमान स्थिर हो सकता है। रिपोर्ट के Highest Possible Ambition (HPA) परिदृश्य के मुताबिक, अगर सब कुछ योजना के मुताबिक चला, तो वैश्विक तापमान लगभग 1.7°C पर चरम पर पहुँचेगा और 2100 तक गिरकर 1.2°C तक आ जाएगा। इसका मतलब हुआ कि सरकार को इलेक्ट्रिक व्हीकल और सोलर पैनल्स पर भारी भरकम सब्सिडी देनी होगी। ऐसा करने से लोग पेट्रोल डीजल और परंपरागत बिजली से दूर हो जाएंगे। जीवाश्म ईंधनों की बढ़ती हुई डिमांड खत्म हो जाएगी।

रिपोर्ट के अनुसार:-

वैश्विक CO₂ एमिशन को 2045 तक नेट-ज़ीरो पर लाना होगा।
संपूर्ण ग्रीनहाउस गैस एमिशन को 2060 के दशक में नेट-ज़ीरो तक पहुँचना होगा।
और 2050 तक दुनिया की दो-तिहाई ऊर्जा मांग बिजली से पूरी की जा सकती है।

क्लाइमेट एनालिटिक्स के सीईओ बिल हेयर ने कहा:- 
“1.5°C से ऊपर जाना एक राजनीतिक असफलता है, जो ऐसी क्षति और टर्निंग पॉइंट्स को जन्म दे सकता है जिन्हें टाला जा सकता था। लेकिन यह रिपोर्ट बताती है कि हम अभी भी हालात को पलट सकते हैं, अगर हम इस ओवरशूट की अवधि को न्यूनतम रखें, तो अपूरणीय जलवायु क्षति से बचा जा सकता है।”

क्लाइमेट एनालिटिक्स के वरिष्ठ विशेषज्ञ डॉ. नील ग्रांट ने कहा:
“पिछले पाँच साल हमने खो दिए हैं, लेकिन इन्हीं पाँच सालों में रिन्यूबल एनर्जीऔर बैटरियों के क्षेत्र में क्रांति भी हुई है। अगर हम इस रफ़्तार पर सवार हो जाएँ, तो अब भी समय है। यह खिड़की बहुत छोटी है, लेकिन खुली है, फैसला हमारे हाथ में है।”

रिपोर्ट के अन्य निष्कर्षों में कहा गया है कि एनर्जी क्षेत्र में मीथेन एमिशन को 2030 तक 20% और 2035 तक 30% घटाना होगा, ताकि तापमान स्थिर हो सके। वहीं, कार्बन रिमूवल टेक्नोलॉजी को 2050 तक सालाना पाँच अरब टन CO₂ कैप्चर करने के स्तर तक लाना होगा।

रिपोर्ट यह भी मानती है कि अगर कार्बन रिमूवल की तकनीक आधी रफ़्तार से भी आगे बढ़ी, तब भी सदी के अंत तक तापमान को 1.5°C से नीचे लाना संभव रहेगा।

यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब COP30 के ठीक पहले दुनिया इस सवाल से जूझ रही है कि क्या 1.5°C का सपना अब भी जिंदा है। क्लाइमेट एनालिटिक्स की यह नई तस्वीर बताती है कि जवाब है, “हाँ, अगर अभी से कार्रवाई शुरू हो।” लेखक: निशांत सक्सेना, संपादक: उपदेश अवस्थी।
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