BNS 66: रेप पीड़िता की स्थायी वनस्पति अवस्था की स्थिति में कठोर दंड का प्रावधान

Bharatiya Nyaya Sanhita - BNS की धारा 66 एक गंभीर अपराध से संबंधित है जो बलात्कार के शिकार व्यक्ति की मृत्यु होने या उसके स्थायी वनस्पति अवस्था (Persistent Vegetative State) में चले जाने पर दंड का प्रावधान करती है। यह धारा मूल रूप से भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376A के अनुरूप है। धारा 66 के प्रावधानों का विस्तार से विवरण और उदाहरण निम्नलिखित हैं: 

BNS की धारा 66 धारा 66 का विस्तृत विवरण:

1. अपराध का आधार (Foundation of Offence)
यह धारा उस व्यक्ति पर लागू होती है जो भारतीय न्याय संहिता की धारा 64 की उप-धारा (1) या उप-धारा (2) के तहत दंडनीय कोई अपराध करता है (जो बलात्कार के अपराध से संबंधित है)।
2. गंभीर परिणाम की शर्त (Condition of Severe Consequence)
दंड की कठोरता इस बात पर निर्भर करती है कि बलात्कार (धारा 64 के तहत दंडनीय) के अपराध को करते समय अभियुक्त ने महिला पर ऐसी चोट पहुँचाई हो जिसके परिणामस्वरूप निम्न में से कोई एक परिणाम हुआ हो:
• महिला की मृत्यु हो जाती है।
• महिला स्थायी वनस्पति अवस्था (persistent vegetative state) में चली जाती है। 

1. धारा 64 की उप-धारा (1) के तहत अपराधी (सामान्य व्यक्ति): 

यह उप-धारा "जो कोई" (Whoever) बलात्कार करता है, (उन मामलों को छोड़कर जो उप-धारा (2) में दिए गए हैं) के लिए कठोर कारावास का दंड निर्धारित करती है। "जो कोई" शब्द दर्शाता है कि यह प्रावधान किसी भी सामान्य व्यक्ति पर लागू होता है।

2. धारा 64 की उप-धारा (2) के तहत अपराधी (विशिष्ट पद वाले व्यक्ति): 

यह उप-धारा उन विशिष्ट व्यक्तियों को सूचीबद्ध करती है जो बलात्कार करते हैं, जिनमें लोक सेवक शामिल हैं। इन श्रेणियों में शामिल हैं:
लोक सेवक (सरकारी कर्मचारी)।
पुलिस अधिकारी।
सशस्त्र बलों का सदस्य।
जेल, रिमांड होम, अस्पताल आदि के प्रबंधन या कर्मचारियों में शामिल व्यक्ति।
महिला के प्रति विश्वास या अधिकार की स्थिति में व्यक्ति (जैसे रिश्तेदार, अभिभावक या शिक्षक)।

3. BNS की धारा 66 के तहत दंड का प्रावधान

यदि कोई व्यक्ति धारा 66 के तहत अपराध करता है, तो उसे निम्नलिखित सज़ा दी जाएगी:
• कठोर कारावास (Rigorous Imprisonment)।
• इसकी अवधि कम से कम बीस वर्ष होगी।
• यह सज़ा आजीवन कारावास तक बढ़ाई जा सकती है (जिसका अर्थ उस व्यक्ति के प्राकृतिक जीवन के शेष भाग के लिए कारावास होगा)।
• अथवा मृत्यु दंड भी दिया जा सकता है।

4. संबंधित प्रावधान (Related Provisions)

यह धारा अन्य महत्वपूर्ण कानूनी प्रक्रियाओं में भी संदर्भित है:
• लोक सेवक द्वारा कर्तव्य की अवहेलना: धारा 66 एक ऐसा गंभीर संज्ञेय अपराध है जिसके संबंध में यदि कोई लोक सेवक (public servant) धारा 199 की उप-धारा (c) के तहत अपेक्षित जानकारी दर्ज करने में विफल रहता है, तो उसे कठोर कारावास की सज़ा दी जा सकती है।
• दोहराने वाले अपराधी: जो व्यक्ति पहले धारा 64, 65, 66, या 70 के तहत दंडनीय अपराधों में दोषी ठहराया जा चुका है, और बाद में इन्हीं धाराओं के तहत दोषी पाया जाता है, उसे धारा 71 के तहत शेष प्राकृतिक जीवन के लिए आजीवन कारावास या मृत्यु दंड से दंडित किया जाएगा।
• पीड़ित की पहचान का प्रकटीकरण: धारा 72 के तहत, धारा 66 के तहत अपराध की शिकार महिला की पहचान को छापना या प्रकाशित करना दंडनीय है, सिवाय कुछ निर्दिष्ट अपवादों के।

BNS की धारा 66 Illustration

मान लीजिए कि A एक पुलिस अधिकारी है (या धारा 64(2) में उल्लिखित कोई अन्य व्यक्ति, जैसे किसी अस्पताल का कर्मचारी), और वह अपनी हिरासत में मौजूद एक महिला Z के साथ बलात्कार (धारा 64(2) के तहत दंडनीय अपराध) करता है।
अपराध करते समय, A महिला Z के सिर पर किसी भारी वस्तु से जानबूझकर गंभीर चोट पहुँचाता है। इस चोट के परिणामस्वरूप Z तुरंत कोमा में चली जाती है और डॉक्टरों द्वारा उसे स्थायी वनस्पति अवस्था (persistent vegetative state) में घोषित कर दिया जाता है।
इस मामले में, A भारतीय न्याय संहिता की धारा 66 के तहत दोषी होगा, और उसे कम से कम बीस वर्ष के कठोर कारावास से दंडित किया जा सकता है, जिसे उसके प्राकृतिक जीवन के शेष भाग के लिए आजीवन कारावास या मृत्यु दंड तक बढ़ाया जा सकता है।

BNS की धारा 66 एक सरलीकृत तुलना:

धारा 66 इस विचार का प्रतिनिधित्व करती है कि यदि बलात्कार एक ऐसा अपराध है जो किसी महिला के जीवन को स्थायी रूप से नष्ट कर देता है या समाप्त कर देता है, तो दंड भी उस गंभीरता को प्रतिबिंबित करना चाहिए। यह एक कानूनी कवच के रूप में कार्य करता है जो यह सुनिश्चित करता है कि शारीरिक क्षति की चरम सीमा के कारण होने वाली सबसे भयानक चोटों के लिए सबसे कड़ा दंड दिया जाए। यदि किसी अपराध की तुलना घातक बीमारी से की जाए, तो धारा 66 उन मामलों को संबोधित करती है जहां रोग इतना घातक हो जाता है कि यह न केवल अंग को क्षति पहुँचाता है, बल्कि पूरे जीवन तंत्र को बंद कर देता है (मृत्यु) या उसे केवल नाममात्र की स्थिति (स्थायी वनस्पति अवस्था) में छोड़ देता है। ✍️लेखक: उपदेश अवस्थी, पत्रकार एवं विधि सलाहकार। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article.
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