MP हाउसिंग बोर्ड में रिश्वतखोरी का वर्ल्ड रिकॉर्ड, ₹5000 के लिए 40 साल से रजिस्ट्री अटकी है

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MP Housing And Infrastructure Development Board जिसे संक्षिप्त में एमपी हाउसिंग बोर्ड कहते हैं, में रिश्वतखोरी का एक ऐसा मामला सामने आया है कि जो भी सुनेगा वह माथा पकड़ लेगा। एक प्रॉपर्टी की 40 साल से रजिस्ट्री नहीं की गई क्योंकि प्रॉपर्टी खरीदने वाले व्यक्ति ने ₹5000 रिश्वत नहीं दी। खरीदने वाला कोई आम नागरिक नहीं बल्कि मीसाबंदी वरिष्ठ भाजपा नेता है। इसके बाद भी रिश्वत के बिना उनका काम नहीं किया जा रहा है। 

दमोह में रिश्वतखोरी से परेशान मीसाबंदी भाजपा नेता ने सम्मान ठुकराया

मामला मध्य प्रदेश के दमोह का है और राज्य स्तरीय एवं राष्ट्रीय मीडिया और सरकार तक अपनी बात पहुंचाने के लिए पीड़ित व्यक्ति संतोष भारती ने वही किया जो वह अंतिम प्रयास के रूप में कर सकते थे। 15 अगस्त के दिन जब स्वतंत्रता दिवस समारोह के मुख्य अतिथि कैबिनेट मंत्री इंदर सिंह परमार द्वारा उन्हें सम्मानित किया जाना था। तब उन्होंने सम्मान लेने से इनकार कर दिया। सिर्फ इतना कहा कि मुझे सम्मान से पहले न्याय चाहिए। इस समय दमोह के कलेक्टर श्री सुधीर कोचर भी मौजूद थे। यह मामला कार्यक्रम में चर्चा का विषय बन गया और अब मध्य प्रदेश की राज्य स्तरीय मीडिया और नेशनल मीडिया द्वारा लिफ्ट किया जा रहा है। 

मध्य प्रदेश हाउसिंग बोर्ड में रिश्वतखोरों की तानाशाही की कहानी

श्री संतोष भारती ने बताया कि 40 साल पहले उन्होंने हाउसिंग बोर्ड से जमीन खरीदी थी। पूरे पैसे अदा कर दिए और अलॉटमेंट भी हो गया, संपत्ति पर कब्जा दे दिया लेकिन हाउसिंग बोर्ड द्वारा उनके नाम रजिस्ट्री नहीं करवाई गई। जब वह रजिस्ट्री करवाने के लिए हाउसिंग बोर्ड के ऑफिस गए तो नियम के अनुसार रजिस्ट्री करवाने के बदले में ₹5000 रिश्वत की मांग की गई। श्री संतोष भारती ने रिश्वत देने से मना कर दिया। उनका कहना था कि जब मैं कोई गलत काम नहीं कर रहा हूं और मुझे अपना काम जल्दी भी नहीं करवाना है। तो फिर रिश्वत देने का प्रश्न ही नहीं उठाता है। लेकिन हाउसिंग बोर्ड वालों ने पिछले 40 साल से जमीन की रजिस्ट्री उनके नाम नहीं की। 

श्री संतोष भारती का अकेला मामला नहीं है मध्य प्रदेश हाउसिंग बोर्ड में आईएएस आईपीएस अधिकारियों और बड़े नेताओं को छोड़कर शायद ही कोई प्रॉपर्टी हो जिनकी रजिस्ट्री अथवा नामांतरण बिना रिश्वत के हुआ हो। पूरा मध्य प्रदेश डिजिटल हो गया लेकिन हाउसिंग बोर्ड आज तक डिजिटल नहीं हुआ। हाउसिंग बोर्ड के कर्मचारी हर मामले में देरी करते हैं और देरी के लिए संपत्ति के मालिक को जिम्मेदार बताते हैं।
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